सावन का पवित्र माह शिव की दिव्य शक्ति से ओतप्रोत होने का अद्भुत अवसर है. फिर चाहे वह व्रत के माध्यम से हो, पूजा के माध्यम से हो, अनुष्ठान के माध्यम से हो या फिर ध्यान के माध्यम से. सावन की शुरुआत होते ही भारत के विभिन्न मंदिर, शिवालय और शिवधाम घंटी, आरती और मंत्रों से गूंजने लगते हैं. आध्यात्मिक रूप से सावन आत्म निरीक्षण और अंतरात्मा के करीब जाने और ईश्वर की कृपा पाने का बेहतरीन समय होता है. इस तरह से सावन आध्यात्मिक जुड़ाव का महीना है.
सावन में इसलिए है जलाभिषेक का महत्व
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन मिलता है कि, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था तो उससे हलाहल विष निकला था जिसे संसार की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव ने पी लिया और नीलकंठ कहलाएं. लेकिन विष के कारण उनके शरीर का ताप बढ़ने लगा और गले में जल होने लगी. तब देवताओं ने शीतल जल से शिवजी का अभिषेक किया जिससे विष का प्रभाव और शरीर का ताप कम हुआ. मान्यता है कि इसलिए सावन माह में शिव को जल अर्पित की जाती है.
सावन के चमत्कारी सोमवार
इसी के साथ सावन महीने में पड़ने वाला सोमवार या सावन सोमवार का व्रत भी दिव्य ऊर्जा से ओतप्रोत होता है. शिव मंदिरों में शिवभक्तों की भारी भीड़, बेलपत्र से ढ़के शिवलिंग, दूध, घी, जल आदि का अभिषेक, मंत्र जाप यह प्रमाण है कि भक्तों के अटूट विश्वास को कैसे शिव ने बनाए रखा है. कोई अच्छे स्वास्थ्य, कोई वैवाहिक जीवन. कोई सुख शांति, कोई संतान सुख तो कोई सफलता की कामना लेकर सावन में शिवलिंग पर जल अर्पित करता है. सावन ऐसा महीना है जब आप सांसारिकता से हटकर शिव की तरह शांत, बलवान और आध्यात्मिकता से प्रभावित हो सकते हैं.
चेतना के नवीनीकरण की प्रकिया है सावन
धार्मिक दृष्टि के साथ ही आयुर्वेद में भी सावन को शुद्धिकरण और नवीकरण अनुष्ठान के रूप में बताया गया है. इस दौरान हल्का और सात्विक भोजन, व्रत और शुद्धि की सलाह दी जाती है जोकि भय और दुर्बलता को दूर करने का सरल माध्यम है. साथ ही सावन चेतना का नवीनीकरण भी है जो न केवल शरीर बल्कि मन और आत्मा को भी पुनर्जीवित करता है. सानम ऐसा समय है जब आप पवित्रता और आध्यात्मिकता की ओर फिर से लौट सकते हैं.
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