पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यहां की सत्तारूढ़ पार्टी अपने वार्षिक ‘शहीद दिवस’ रैली को ‘बंगाली अस्मिता’ के विमर्श को धार देने और भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला भाषी प्रवासियों के कथित उत्पीड़न को लेकर मुख्य विपक्षी दल पर निशाना साधने के मंच के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है.
भाजपा शासित असम, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली जैसे राज्यों में बांग्ला भाषी श्रमिकों के साथ भाषा के आधार पर कथित तौर पर भेदभाव और तनाव की पृष्ठभूमि में तृणमूल कांग्रेस कोलकाता के एस्प्लेनेड में 21 जुलाई को रैली आयोजित करने जा रही है. इसमें पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से आह्वान करेंगी और इस संदेश को दोहराएंगी, ‘बांग्ला भाषी अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक नहीं हैं.’
‘भाजपा गरीबी को बना रही अपराध’
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ‘पीटीआई’ को बताया, ‘बार-बार गरीब बांग्ला भाषी श्रमिकों को हिरासत में लिया जा रहा है, परेशान किया जा रहा है और उन्हें घुसपैठिया करार दिया जा रहा है. भाजपा गरीबी को अपराध बना रही है और हाशिए पर पड़े लोगों को परेशान करने के लिए पहचान को हथियार बना रही है.’
हाल के सप्ताहों में बंगाल में राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है. बनर्जी ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बांग्ला भाषी प्रवासियों को हिरासत में लिया जा रहा है, निशाना बनाया जा रहा है और उनकी भाषाई पहचान की जा रही है. बनर्जी ने हाल ही में एक जनसभा में कहा था, ‘भाजपा शासित राज्यों में बंगाली होना अपराध हो गया है. उन्हें लगता है कि हर बंगाली बांग्लादेश से है, हम यह अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे.’
चुनावी नहीं, अब अस्तित्व की लड़ाई
तृणमूल ने भाजपा पर ‘भाषाई भेदभाव’ का सहारा लेने का आरोप लगाया है और क्षेत्रीय पहचान के भावनात्मक मुद्दे को फिर से उभारने की कोशिश कर रही है. माना जा रहा है कि तृणमूल को 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हिंदुत्व लहर का मुकाबला करने में क्षेत्रीय पहचान के मुद्दे से बहुत मदद मिली.
तृणमूल के एक सांसद ने कहा, ‘गरिमा, पहचान और अस्तित्व दांव पर है. भाजपा राष्ट्रवाद की आड़ में बंगाली अस्मिता को मिटाने पर तुली है. हमारी लड़ाई सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि अस्तित्व की है.’
तृणमूल के आरोपों पर भाजपा का पलटवार
दूसरी ओर, भाजपा ने तृणमूल के आरोपों पर जोरदार पलटवार किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में दुर्गापुर में अपनी रैली के दौरान तृणमूल पर घुसपैठ को बढ़ावा देने और वोट बैंक की राजनीति के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाया था.
मोदी ने कहा था, ‘यह भाजपा ही है जो वास्तव में बंगाली ‘अस्मिता’ की रक्षा करती है.’ उन्होंने भाजपा को बंगाल में एकमात्र विश्वसनीय विकल्प के रूप में पेश किया. बंगाली प्रवासियों के उत्पीड़न के तृणमूल के आरोपों का जवाब देते हुए, भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि यह भ्रम नागरिकता और मतदाता दस्तावेजीकरण को सुव्यवस्थित करने में तृणमूल की विफलता से उपजा है.
हर साल 21 जुलाई को शहीद दिवस रैली
भाजपा की बंगाल इकाई के एक नेता ने कहा, ‘वे अपनी अक्षमता छिपाने के लिए दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं.’ तृणमूल कांग्रेस हर साल 21 जुलाई को शहीद दिवस रैली आयोजित करती है. पार्टी 1993 में पुलिस गोलीबारी में 13 युवा कार्यकर्ताओं के मारे जाने की याद में शहीद दिवस मनाती है.
उस समय युवा कांग्रेस की तत्कालीन मुखर नेता ममता बनर्जी ने राज्य सचिवालय तक एक मार्च का नेतृत्व किया था, जिसमें मांग की गई थी कि मतदाता पहचान पत्र को ही मताधिकार के लिए एकमात्र दस्तावेज बनाया जाए. पिछले कुछ सालों में यह रैली तृणमूल के लिए शक्ति प्रदर्शन का मौका बन गया है, जिसमें वह अक्सर आगामी सियासी लड़ाइयों का रुख तय करती है.
विधानसभा चुनावों से पूर्व अभियान
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, इस साल की रैली 2026 के विधानसभा चुनावों से पूर्व अभियान शुरू करने का ‘लॉन्च पैड’ होगा, जहां तृणमूल बंगाली अस्मिता और राज्य की सीमाओं के पार अपने लोगों के कथित अपमान को मुख्य मुद्दा बना आगे की लड़ाई लड़ने की योजना बना रही है.
तृणमूल के एक युवा विधायक ने कहा, ‘हमने 2011 में उन्हें परिवर्तन दिया था. अब हम उन्हें प्रतिरोध देंगे. उन्होंने बनर्जी के भाषण की ओर इशारा किया, जिसमें भावनात्मक अपील के साथ तीखे राजनीतिक संदेश दिये गए.
‘खेला होबे, अबर होबे’
तृणमूल की इस रैली में राज्य के कोने-कोने से लाखों समर्थकों के कोलकाता पहुंचने की उम्मीद है. कुछ लोग भीड़-भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में तो कुछ तृणमूल के झंडे लगे ट्रक से शहर की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे कोलकाता में उत्सव जैसा माहौल बन रहा है.
एस्प्लेनेड और सियालदह में चाय की दुकानें और ढाबे ‘खेला होबे, अबर होबे’ और ‘बांग्लार केउ बांग्लादेशी नोय’ (बंगाल का कोई भी बंगाली बांग्लादेशी नहीं है) जैसे नारे लिखे दिखाई दे रहे हैं. पार्टी के एक रणनीतिकार ने कहा, ‘1993 से 2025 तक, यह रैली एक श्रद्धांजलि से कहीं अधिक है. यह ममता बनर्जी की अन्याय के खिलाफ, अपमान के खिलाफ और बंगाल की आत्मा के लिए लड़ाई की घोषणा है.’
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