16,000 KM दूर जमीन के नीचे छिपे खजाने पर भारत की नजर, मिल गया तो बल्ले-बल्ले

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Agency:एजेंसियांLast Updated:July 16, 2025, 22:45 ISTभारत अब सिर्फ अपने आसपास ही नहीं, बल्कि 16,000 किलोमीटर दूर तक की जमीन के नीचे दबे खनिज खजानों की ओर देख रहा है. चिली और पेरू में छिपे रेयर अर्थ मिनरल्स और तांबे जैसे बहुमूल्य खन‍िज आने वाले वर्षों में भारत की …और पढ़ेंभारत-चिली और पेरू के साथ रेयर अर्थ मिनरल की डील पर बात कर रहा है.हाइलाइट्सभारत चिली और पेरू से रेयर अर्थ और तांबे की लॉन्ग टर्म सप्लाई डील पर काम कर रहा.चीन की खनिज पकड़ तोड़ने और ऊर्जा सुरक्षा के लिए भारत वैश्विक खजानों की तलाश मेंडील सफल रही तो टेक्नोलॉजी, डिफेंस और ग्रीन एनर्जी आत्मनिर्भरता को नई ताकत मिलेगीभारत अब दुनिया के उस कोने की ओर देख रहा है, जहां जमीन के नीचे छिपा है एक ऐसा खजाना जो आने वाले वर्षों में देश की एनर्जी, टेक्नोलॉजी और डिफेंस इंडस्ट्री की किस्मत बदल सकता है. जी हां, बात हो रही है दक्षिण अमेरिका के दो देशों चिली और पेरू की, जिनकी धरती के नीचे दबे हैं रेयर अर्थ मिनरल्स और भारी मात्रा में तांबा, जिसकी भारत को सख्त जरूरत है.

भारत अपनी जरूरत का 90% से ज्यादा कॉपर यानी तांबा अभी दूसरे देशों से आयात करता है. लेकिन 2047 तक ये आयात 97% तक पहुंच सकता है, क्योंकि देश में माइनिंग कम और मांग लगातार बढ़ रही है. तांबे की जरूरत खासतौर पर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, ग्रीन एनर्जी, हाईटेक मशीनों और डिफेंस सिस्टम्स के लिए तेजी से बढ़ रही है. दूसरी तरफ, रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे लैंथेनम, नियोडाइमियम, सेरियम आदि बिना इलेक्ट्रॉनिक्स और बैटरियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती. यही वजह है कि भारत अब इस रणनीतिक खजाने को हासिल करने की होड़ में शामिल हो गया है.

भारत क्या कर रहा है?
सरकार ने भारत-चिली और भारत-पेरू मिनरल पार्टनरशिप की दिशा में बातचीत शुरू कर दी है. अगर ये बातचीत सफल होती है, तो भारत सीधे इन देशों से लॉन्ग टर्म सप्लाई एग्रीमेंट कर सकता है, जिससे देश को इन जरूरी संसाधनों की स्थायी आपूर्ति मिल सकेगी. इतना ही नहीं, भारत चाह रहा है कि वहां की खनन कंपनियों में निवेश कर वह अपना स्थायी हिस्सा भी बना सके ताकि जरूरत के वक्त सप्लाई में रुकावट ना आए. इस कदम को चीन की एकाधिकार नीति का जवाब भी माना जा रहा है, क्योंकि आज की तारीख में रेयर अर्थ मिनरल्स के वैश्विक व्यापार पर चीन का ही दबदबा है.

क्या होगा फायदा?अगर ये डील होती है, तो भारत सिर्फ तांबे और मिनरल्स की कमी से नहीं उबरेगा, बल्कि ग्रीन एनर्जी मिशन को ताकत मिलेगी. EV इंडस्ट्री की लागत घटेगी. स्मार्टफोन, सोलर पैनल, बैटरी और रडार सिस्टम जैसे हाईटेक उत्पादों का प्रोडक्शन सस्ता और आत्मनिर्भर बनेगा. कुल मिलाकर 16,000 किलोमीटर दूर के इस ‘मेटल खजाने’ पर भारत की नजर सिर्फ आयात घटाने की नहीं है, बल्कि यह एक जियो-स्ट्रैटेजिक चाल भी है ताकि आने वाले दशक में भारत टेक्नोलॉजी और ऊर्जा सुरक्षा के मोर्चे पर आत्मनिर्भर और ग्लोबल खिलाड़ी बन सके.Gyanendra MishraMr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.OXBIG NEWS NETWORK.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for ‘Hindustan Times Group…और पढ़ेंMr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.OXBIG NEWS NETWORK.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for ‘Hindustan Times Group… और पढ़ेंLocation :New Delhi,New Delhi,Delhihomebusiness16,000 KM दूर जमीन के नीचे छिपे खजाने पर भारत की नजर, मिल गया तो बल्ले-बल्ले

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