नई दिल्ली. भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, लेकिन अगर हम इनोवेशन यानी नवाचार में लीड नहीं कर पाए, तो यह उपलब्धि खोखली रह जाएगी. यह कहना है पूर्व भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन का, जिन्होंने टीओआई में छपे अपने लेख में भारत की विकास यात्रा पर गंभीर सवाल उठाए हैं.
राजन का कहना है कि भारत की बड़ी कंपनियां घरेलू बाजार में तो बड़ी मानी जाती हैं, लेकिन इनका कोई ग्लोबल पहचान नहीं है. “हमारे पास न कोई निन्टेंडो है, न टोयोटा, न ही कोई मर्सिडीज या सोनी जैसी ब्रांड जिसकी दुनिया तारीफ करे,” उन्होंने लिखा. उनके मुताबिक, भारत की कार इंडस्ट्री तो टैरिफ से बचाई जा रही है, लेकिन एक भी भारतीय मॉडल ऐसा नहीं है जो अमेरिका या यूरोप जैसे विकसित देशों में बिकता हो.
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“रिस्कलेस कैपिटलिज्म” और राज्य का संरक्षण
राजन कहते हैं कि भारत में कंपनियों को इतना ज्यादा सुरक्षा कवच मिला हुआ है कि उन्हें कोई खतरा महसूस ही नहीं होता. “अगर कोई विदेशी कंपनी चुनौती बनती है, तो उस पर टैक्स लगा दो, रेगुलेशन थोप दो या एंटी-ट्रस्ट जांच शुरू कर दो,” वे लिखते हैं. इस तरह की ‘रिस्कलेस कैपिटलिज्म’ की स्थिति कंपनियों को आलसी बना देती है. उन्हें इनोवेट करने या बाहर की दुनिया में मुकाबला करने की जरूरत ही महसूस नहीं होती.
उन्होंने ये भी जोड़ा कि जैसे-जैसे भारत का घरेलू बाजार और बड़ा हो रहा है, ये समस्या और गंभीर हो रही है. “जब आपको घरेलू बाजार से ही काफी मुनाफा मिल रहा है, तो आप क्यों रिस्क लेकर नए प्रोडक्ट बनाएं या एक्सपोर्ट करें?” राजन पूछते हैं.
क्या है रास्ता आगे का?
राजन का इशारा साफ है, भारत को केवल “मेक इन इंडिया” से आगे बढ़कर “इनवेट इन इंडिया” की दिशा में सोचना होगा. सरकार को सिर्फ संरक्षण देने के बजाय प्रतियोगिता को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि भारत की कंपनियां सिर्फ घरेलू ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना सकें.
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