अक्सर लोगों में यह मिसकंसेप्शन होता है कि अगर कपल का ब्लड ग्रुप सेम हो तो उन्हें बच्चा पैदा करने में दिक्कत आती है. रियलिटी में ऐसा नहीं है. सेम ब्लड ग्रुप वाले कपल्स को बेबी कंसीव करने में आमतौर पर कोई इश्यू नहीं होता है.
क्या सेम ब्लड ग्रुप वाले कपल को बच्चा पैदा करने में दिक्कत आती है?
- नहीं, सेम ब्लड ग्रुप होने से बेबी कंसीव करने में कोई प्रॉब्लम नहीं आती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, स्पर्म और एग पर ब्लड ग्रुप एंटीजन नहीं होते हैं. इसलिए फर्टिलाइजेशन और भ्रूण के डेवलपमेंट पर इसका कोई डायरेक्ट असर नहीं पड़ता.
- मुख्य प्रॉब्लम ब्लड ग्रुप के आरएच फैक्टर से जुड़ी होती है, न कि ब्लड ग्रुप के मेन टाइप (ए, बी, एबी, ओ) से.
आरएच इम्कम्पेटिबिलिटी की प्रॉब्लम कब आती है?
यह प्रॉब्लम तब आती है जब मां का ब्लड ग्रुप आरएच-नेगेटिव हो और पिता का ब्लड ग्रुप आरएच-पॉजिटिव हो. इस सिचुएशन में, अगर बेबी आरएव-पॉजिटिव होता है, तो मां की बॉडी बेबी के ब्लड को “फॉरेन” मान सकती है और एंटीबॉडी बनाना स्टार्ट कर सकती है.
- इफेक्ट: फर्स्ट प्रेग्नेंसी में यूजुअली यह बड़ी प्रॉब्लम नहीं होती, लेकिन फ्यूचर की प्रेग्नेंसी में ये एंटीबॉडीज बेबी की रेड ब्लड सेल्स को डिस्ट्रॉय कर सकती हैं, जिससे आरएच इम्कम्पेटिबिलिटी नामक सीरियस कंडीशन पैदा हो सकती है.
- बेबी पर असर: इससे बेबी में एनीमिया, जॉन्डिस या कुछ मामलों में ब्रेन रिलेटेड प्रॉब्लम्स भी हो सकती हैं.
- ट्रीटमेंट: आजकल इस प्रॉब्लम को एंटी-डी इम्यूनोग्लोबुलिन इंजेक्शन के जरिए आसानी से मैनेज किया जा सकता है, जो आरएच-नेगेटिव प्रेग्नेंट वीमेन को दिया जाता है.
शादी से पहले ब्लड टेस्ट पर क्यों जोर देते हैं डॉक्टर्स?
डॉक्टर्स शादी से पहले ब्लड टेस्ट पर जोर इसलिए देते हैं ताकि पोटेंशियल हेल्थ प्रॉब्लम्स को डिटेक्ट करके उन्हें रोका या मैनेज किया जा सके. इसका मेन रीजन ब्लड ग्रुप की इम्कम्पेटिबिलिटी से कहीं ज़्यादा है.
शादी से पहले ब्लड टेस्ट से कई इम्पोर्टेंट बातें पता चलती हैं,
- आरएच फैक्टर इम्कम्पेटिबिलिटी: जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह सबसे इम्पोर्टेंट रीजन्स में से एक है. मां के आरएच-नेगेटिव और पिता के आरएच-पॉजिटिव होने पर बेबी की हेल्थ पर पड़ने वाले प्रभावों को प्रिवेंट करने के लिए इसे पहले ही जानना जरूरी) होता है.
- थैलेसीमिया: यह एक सीरियस ब्लड डिसऑर्डर है. अगर पेरेंट्स दोनों थैलेसीमिया के कैरियर हैं, तो उनके बेबी में थैलेसीमिया मेजर होने की 25% पॉसिबिलिटी होती है, जो बेबी के लिए लाइफ-थ्रेटनिंग हो सकता है. इस टेस्ट से इसका पता लगाया जा सकता है.
- सिकल सेल एनीमिया: यह भी एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जिसकी जांच भी मैरिज से पहले की जाती है.
- सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन्स: एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, सिफलिस, गोनोरिया आदि जैसे इन्फेक्शन्स की जांच की जाती है, ताकि उनका ट्रीटमेंट किया जा सके और पार्टनर या बेबी में इन्फेक्शन फैलने से रोका जा सके.
- जनरल हेल्थ चेकअप: हीमोग्लोबिन लेवल (एनीमिया), ब्लड शुगर, किडनी और लिवर फंक्शन आदि की जनरल जांच भी की जाती है, ताकि कोई अंडरलाइंग हेल्थ प्रॉब्लम हो तो उसका पता चल सके.
शादी से पहले ब्लड टेस्ट का उद्देश्य फ्यूचर संतान की हेल्थ को प्रोटेक्ट और कपल की हैप्पी और हेल्दी मैरिड लाइफ को सुनिश्चित करना है. यह किसी भी पोटेंशियल खतरे को पहले ही आइडेंटिफाई कर उसे प्रभावी ढंग से मैनेज करने का मौका देता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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