मार्क ज़ुकरबर्ग इन दिनों बहुत ज्यादा परेशान हैं. उनकी परेशानी की मुख्य वजह है मेटा (Meta) का AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में पिछड़ जाना. लेकिन अब लगता है कि उन्होंने इसका तोड़ निकाल लिया है. उन्होंने अपने खेमे में एक ऐसे व्यक्ति को शामिल कर लिया है, जो कंपनी को AI की दुनिया में बहुत आगे ले जा सकता है. उस एक आदमी को अपने पाले में लाने के लिए मार्क ज़ुकरबर्ग ने 14 अरब डॉलर खर्च कर डाले.खबर है कि मेटा ने Scale AI नामक कंपनी को खरीद लिया है. लेकिन सच तो ये है कि उसने सिर्फ निवेश किया है, पूरी तरह नहीं खरीदा नहीं है. अगर ऐसा होता, तो उसे कंपनी के सारे शेयर खरीदने पड़ते, और स्केल के सभी कर्मचारियों को या तो मेटा के शेयर मिलते या उन्हें पैसा दिया जाता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने Scale AI में 14 अरब डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया, जिससे कंपनी की वैल्यू 29 अरब डॉलर हो गई और मेटा को लगभग 49 फीसदी हिस्सेदारी मिली. Scale अब भी एक अलग कंपनी है, और उसके बोर्ड में कोई बदलाव नहीं हुआ. हालांकि अब यह कंपनी करेगी वही, जो मार्क ज़ुकरबर्ग चाहेंगे.
Scale AI के फाउंडर और सीईओ अलेक्जेंडर वांग इस डील का बड़ा हिस्सा हैं. वे अब मेटा जॉइन कर रहे हैं. हालांकि वो अब भी स्केल के बोर्ड में बने रहेंगे, लेकिन मेटा और अलेक्जेंडर के पास मिलकर इतनी हिस्सेदारी है कि कंपनी के फैसले अब वही तय करेंगे. मतलब, निर्देश मेटा से ही मिलेंगे.
कर्मचारियों को मिला डील का बड़ा हिस्सा
डील इतनी बड़ी थी कि कुछ लोगों को यह लगा कि मेटा ने पूरी कंपनी खरीद ली है. लेकिन असल में इस डील का बड़ा हिस्सा स्केल एआई के कर्मचारियों को गया, जिन्हें उनके शेयर के बदले में बड़ी रकम दी गई और फिर भी उनके पास कुछ हिस्सेदारी बनी रही. इस तरह वे पैसा भी कमा पाए. अगर कंपनी और आगे बढ़ती है तो वे और भी लाभ कमा सकते हैं. ऐसा कहा जाता है कि ये आइडिया खुद अलेक्जेंडर का था, ताकि उनके साथ काम करने वाले लोग पीछे न छूट जाएं.
Scale AI के बिजनेस में मेटा की क्या दिलचस्पी?
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि मेटा को Scale AI की असली बिजनेस सर्विस में खास दिलचस्पी नहीं है. स्केल एआई का काम है डेटा लेबलिंग. यानी मशीन लर्निंग ट्रेनिंग के लिए डेटा तैयार करना, जो कि ज्यादातर मजदूरों से करवाया जाता है. इसमें कोई खास टेक्नोलॉजी या इनोवेशन नहीं है. Scale AI कुछ बड़ी कंपनियों जैसे टोयोटा, जनरल मोटर्स, एटसी और सरकारों के लिए काम करता है. यानी उन लोगों के लिए काम करती है, जो AI को अपनाना तो चाहते हैं, लेकिन खुद नहीं बना सकते.
मेटा जैसी बड़ी टेक कंपनी को Scale की ये सर्विस बिल्कुल फिट नहीं बैठती. वो कोई B2B डेटा सर्विस कंपनी नहीं बनना चाहती. और Scale का डेटा भी Meta के लिए इतना जरूरी नहीं है कि उसके लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की जाए. असल में मेटा ने ये डील इसीलिए की, क्योंकि वो अलेक्जेंडर वांग को अपने साथ लाना चाहते थे.
ऐसा पहले भी हुआ है. गूगल ने Character AI में इन्वेस्ट किया और उसके टॉप टैलेंट को अपनी जैमिनी टीम में ले आया. माइक्रोसॉफ्ट ने Inflection AI के साथ ऐसा ही किया. अब सवाल है कि अलेक्जेंडर वांग इतना खास क्यों हैं?
जो सबसे अच्छा LLM बनाएगी, वही कंपनी टिकेगी
आज की दुनिया में जो कंपनी सबसे बेहतरीन लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) बनाएगी, वही जीतेगी. ये मार्केट को जीतने की जंग है. मॉडल बनाना तो अब बहुत लोगों को आता है, लेकिन सही डेटा, ज़बरदस्त कंप्यूट पावर और स्केलिंग के बिना कोई टिक नहीं सकता. और यूज़र हमेशा सबसे अच्छा मॉडल चुनते हैं. इसका मतलब है कि दूसरे नंबर वाला कोई मायने नहीं रखता.
मेटा फिलहाल इस रेस में काफी पीछे है. OpenAI ने ChatGPT से कंज्यूमर मार्केट में कब्जा जमा लिया है. गूगल और एंथ्रोपिक भी डेवलपर मार्केट में मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं. मेटा ने भले ही Llama 2 जैसे मॉडल बनाए हैं, मगर इस दौड़ में वह नंबर 1 पर नहीं पहुंच पाया है.
Meta की खास रणनीति थी कि सब कुछ ओपन सोर्स रखा जाए. इससे बहुत सारे डेवलपर्स और रिसर्चर्स मेटा के मॉडल्स से जुड़े रहे. लेकिन अब Meta को लगता है कि बस इतना काफी नहीं है. अब उन्हें किसी ऐसे लीडर की जरूरत है, जो उनका AI भविष्य गढ़ सके. और वांग उस रोल के लिए परफेक्ट माने गए.
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