नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI देश की आर्थिक सेहत को बनाए रखने वाली सबसे अहम संस्था है. इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वो ब्याज दरें, महंगाई, और वित्तीय स्थिरता यानी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी को कंट्रोल में रखे. आमतौर पर RBI के अंदर से आने वाले विचार एक जैसे होते हैं, ताकि देश के निवेशक, इंडस्ट्री और आम जनता को साफ-स्पष्ट संदेश मिले. लेकिन हाल ही में RBI के दो बड़े अधिकारियों के बयानों में बड़ा फर्क दिखा है. एक हैं गवर्नर संजय मल्होत्रा और दूसरे हैं मौद्रिक नीति समिति यानी MPC के सदस्य सौगत भट्टाचार्य.इंडियन एक्सप्रेस ने गवर्नर संजय मल्होत्रा का बयान छापा है. मल्होत्रा का मानना है कि भारत की इकॉनमी भले ही अभी मजबूत हो, लेकिन दुनिया में चल रही अनिश्चितता और बाहरी झटके भारत के लिए खतरा बन सकते हैं. उन्होंने RBI की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में बताया कि जैसे-जैसे ग्लोबल ट्रेड यानी अंतरराष्ट्रीय व्यापार कमजोर हो रहा है, मौसम से जुड़ी घटनाएं बढ़ रही हैं, और देशों के बीच राजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा है, ये सब भारत की ग्रोथ को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उन्होंने अमेरिका के नए टैक्स (टैरिफ) और इंटरनेशनल पॉलिसी में हो रही अनिश्चितता को भी भारत के लिए चिंता की बात बताया. गवर्नर का कहना है कि इन हालातों में RBI को हमेशा तैयार रहना चाहिए और जरूरत के हिसाब से तुरंत कदम उठाने के लिए लचीला रवैया अपनाना चाहिए.
गवर्नर मल्होत्रा ने कहा कि भारत की ग्रोथ रेट 6.5 फीसदी के आसपास रह सकती है, लेकिन यह RBI की उम्मीद से थोड़ी कम है. इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे कि दुनिया भर में कर्ज का बढ़ना (debt crisis), क्लाइमेट चेंज, टेक्नोलॉजी में तेजी से बदलाव और ट्रेड में बदलाव. उनके अनुसार, भारत अब ग्लोबल ग्रोथ का बड़ा हिस्सा बन चुका है, इसलिए हमें इन खतरों के लिए और भी सतर्क रहना पड़ेगा.
डर नहीं डेटा के आधार पर होनी चाहिए हमारी पॉलिसी: सौगत भट्टाचार्य
दूसरी तरफ सौगत भट्टाचार्य की राय थोड़ी अलग है. उनका कहना है कि अभी के डेटा को देखकर ऐसा नहीं लगता कि दुनिया की मौजूदा अनिश्चितता या राजनीतिक तनाव भारत की ग्रोथ या महंगाई पर ज्यादा असर डालेंगे. उन्हें उम्मीद है कि ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ेगी, मॉनसून अच्छा रहेगा और सरकार के हालिया कदमों से भारत की इकॉनमी और मजबूत होगी. वे यह भी मानते हैं कि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट यानी निजी निवेश में बढ़ोतरी हो रही है, जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत है.
भट्टाचार्य ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा कि RBI की मौजूदा पॉलिसी ‘न्यूट्रल’ है. इसका मतलब है कि RBI के पास यह ऑप्शन है कि ज़रूरत होने पर ब्याज दरें घटाई जाएं या फिर स्थिर रखी जाएं. अभी के हालात में कोई भी बड़ा फैसला तभी लिया जाएगा, जब आगे का डेटा क्लियर होगा. उनका नजरिया यह है कि नीतियां सटीक डेटा के आधार पर तय होनी चाहिए, न कि डर या अनुमान पर.
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भट्टाचार्य का मानना है कि RBI की मौजूदा पॉलिसी ‘न्यूट्रल’ है. इसका मतलब है कि RBI के पास यह ऑप्शन है कि ज़रूरत होने पर ब्याज दरें घटाई जाएं या फिर स्थिर रखी जाएं. अभी के हालात में कोई भी बड़ा फैसला तभी लिया जाएगा, जब आगे का डेटा क्लियर होगा. उनका नजरिया यह है कि नीतियां सटीक डेटा के आधार पर तय होनी चाहिए, न कि डर या अनुमान पर.
दोनों के बयानों में मतभेद क्यों?
असल में, दोनों की बातों का फर्क उनके रोल यानी जिम्मेदारी से जुड़ा है. RBI गवर्नर की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है. उन्हें न सिर्फ मौद्रिक नीति देखनी होती है, बल्कि पूरे फाइनेंशियल सिस्टम को सुरक्षित और स्थिर बनाए रखना होता है. इसलिए गवर्नर का नजरिया थोड़ा ज्यादा सतर्क और हर एंगल से सोचने वाला होता है. वहीं, MPC के सदस्य की जिम्मेदारी खास तौर पर ब्याज दर और महंगाई जैसे मुद्दों पर केंद्रित होती है. इसलिए उनका फोकस घरेलू ग्रोथ और महंगाई के आंकड़ों पर होता है.
इसका मतलब ये नहीं कि कोई एक सही है और दूसरा गलत. असल में, दोनों की बातें एक ही सच के दो अलग-अलग पहलू हैं. जब देश की पॉलिसी बनाई जाती है, तो जरूरी होता है कि अलग-अलग नजरियों को सुना जाए और मिलाकर एक संतुलित फैसला लिया जाए.
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गवर्नर मल्होत्रा जहां दुनिया की मुश्किलों और रिस्क पर फोकस कर रहे हैं, वहीं भट्टाचार्य भारत के अंदर की पॉजिटिव चीज़ों जैसे ग्रामीण डिमांड, सरकारी खर्च और इन्वेस्टमेंट ग्रोथ पर ध्यान दे रहे हैं. दोनों के पास एक ही तरह का डेटा है, लेकिन डेटा को देखने और समझने का तरीका अलग हो सकता है. मल्होत्रा सबसे खराब स्थिति (worst-case) के लिए तैयार रहना चाहते हैं, जबकि भट्टाचार्य मानते हैं कि अभी की स्थिति उतनी खराब नहीं है और चीजें बेहतर हो सकती हैं.
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