नींद से जंग, गो पिल्स का सहारा, 37 घंटे की उड़ान… बी-2 पायलटों की दास्तान, खड़े कर देंगे रोंगटे

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B2 Bomber Attack On Iran and Pilot Story: बीते शुक्रवार को इजरायल और ईरान के बीच जंग चरम पर था. दोनों देश एक दूसरे पर मिसाइलों और बमों की बारिश कर रहे थे. उसी वक्त अमेरिका के मिसूरी व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस पर भी हचलत तेज होती है. रात में ठंडी हवाएं चल रही थीं और आसमान में सितारे टिमटिमा रहे थे. लेकिन बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर के पायलटों के लिए यह रात सन्नाटे से भरी नहीं थी. उनके दिलों में एक तूफान था. सामने था ऑपरेशन मिडनाइट हैमर. 37 घंटे का मिशन. उन्हें ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला करना था. फिर उनका मिशन शुरू होता है. फिर वह वापस आते हैं. यह कहानी उन पायलटों की है, जिन्होंने नींद, थकान और खतरे से लड़कर इतिहास लिखा है.

सीएनएन ने इस पूरे मिशन की तैयारी और पायलटों की स्थिति पर एक डिटेल रिपोर्ट छापी है. यह एक पूर्व बी2 बॉम्बर पायलट के अनुभव पर आधारित है. रिपोर्ट के मुताबिक सुबह चार बजे अलार्म बजता है. पायलट अपनी आंखें मलते हुए उठते हैं. रिटायर्ड कर्नल मेल्विन डीएक्स की इससे जुड़ी यादें आज भी ताजा हैं. 2001 में उन्होंने 44 घंटे की उड़ान भरी थी. उन्होंने अफगानिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए बी2 बॉम्बर से बम बरसाए थे. वह बताते हैं कि ऐसी उड़ानों की तैयारी महीनों पहले शुरू होती है. सिम्युलेटर में 24 घंटे की प्रैक्टिस. नींद का चक्र सेट करना. फ्लाइट डॉक्टर की स्लीपिंग पिल्स. मिशन से पहले पायलट तरोताजा हों, यह जरूरी है. ब्रीफिंग रूम में हर डिटेल पर चर्चा. फिर वे अपने बी-2 की ओर बढ़े. इन विमानों के नाम दिल में जोश भरते हैं.

स्पिरिट ऑफ अमेरिका

कॉकपिट में दो सीटें. बायीं पर पायलट. वह विमान उड़ाता है. खतरे से बचाता है. दायीं सीट पर मिशन कमांडर होता है. उसके पास रडार, हथियार, कम्युनिकेशन संभालने की जिम्मेदारी होती है. कॉकपिट छोटा होता है. उसमें एक केमिकल टॉयलेट होता है जो सिर्फ इमरजेंसी के लिए. माइक्रोवेव, मिनी-फ्रिज, सैंडविच, सूरजमुखी के बीज, पानी की बोतलें. लंबी उड़ान में हाइड्रेशन ही जिंदगी है. पायलट जानते हैं. एक गलती और सब कुछ खत्म.

बी-2 ने उड़ान भरी. सात बॉम्बर पश्चिम गए. यह छल था. असली हमले वाले बॉम्बर अटलांटिक के रास्ते ईरान की ओर बढ़े. रास्ते में छह-सात बार मिड-एयर रिफ्यूलिंग हुआ. हर बार 20-30 मिनट लगे. रात में फ्यूल टैंकर बी-2 से जुड़ते हैं. पायलट की आंखें टैंकर की लाइट्स पर होती है. दिल की धड़कनें तेज रहती. एक गलत मूव और टक्कर सब कुछ तबाह कर सकता है. ऐसे में ट्रेनिंग ही उनका सहारा होता है.

ईरान के करीब

ईरान के करीब. तनाव चरम पर. एक अमेरिकी सबमरीन ने 24 टॉमहॉक मिसाइलें दागीं. ईरान की रक्षा प्रणालियां निशाने पर थीं. वाशिंगटन के समय के अनुसार सुबह 6:40 बजे बी-2 ने फोर्डो परमाणु ठिकाने पर दो 30,000 पाउंड के जीबीयू-57 बम गिराए. इस बम को बंकर बस्टर नाम दिया गया है. इजरायल-ईरान युद्ध में इसका पहली बार इस्तेमाल हुआ. बम गिरते ही विमान हल्का हो गए. पायलट ने पलक झपकते कंट्रोल संभाला. कॉकपिट में सन्नाटा. सिर्फ इंजन की गूंज.

ऐसी उड़ानों में वापसी सबसे मुश्किल होती है. एड्रेनालिन खत्म, पायलटों को थकान घेर लेता है. पायलट बारी-बारी से कॉकपिट के पीछे कॉट पर सोए. गो पिल्स खाईं. अलर्ट रहना जरूरी था. मेल्विन की बात याद आई. 2001 में सूरज की रोशनी ने नींद रोकी थी. इस बार रात-दिन का मिश्रण. आंखें भारी. दिमाग सुस्त. फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी. एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया. सूरजमुखी के बीज चबाए. पानी पिया. बस, आगे बढ़ते रहे.

37 घंटे बाद व्हाइटमैन बेस. सात बी-2 लैंड हुए. कंट्रोलर की आवाज- वेलकम होम. पायलटों की आंखों में राहत. शरीर थका. लेकिन दिल में जीत. जनरल डैनियल केन ने कहा. “इतिहास का सबसे बड़ा बी-2 ऑपरेशन”. यह दूसरा सबसे लंबा मिशन था.

यह कहानी मशीनों की नहीं. इंसानों की है. उन पायलटों की, जो नींद से लड़ते हैं. थकान से जूझते हैं. खतरे को गले लगाते हैं. उनके डर. उनकी हिम्मत. उनकी दोस्ती. कॉकपिट में बिताए वो पल. जब एक-दूसरे पर भरोसा ही सब कुछ था. बी-2 की हर उड़ान में उनकी आत्मा है.

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