भारत सरकार ने हाल ही में एक नया सुझाव दिया है, जिसमें एयर कंडीशनर का टंपरेचर 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच में सेट करने की बात कही गई है. इस कदम का मकसद देश में बढ़ती एनर्जी की खपत को कम करना और जलवायु से जुड़े खतरे को थोड़ा कंट्रोल करना है. सुनने में यह एक सिंपल आइडिया लग सकता है, लेकिन इस पर लोगों की राय अलग-अलग है. कुछ लोग इसे जरूरी और सही दिशा में कदम मान रहे हैं, तो कुछ लोग कह रहे हैं कि ये सिर्फ एक टेम्परेरी उपाय है, जिससे असली प्रॉब्लम का हल नहीं निकलता.यह मुद्दा सिर्फ इतना नहीं है कि एसी कितने डिग्री पर चले या बिजली का बिल कम आए. असल में ये बहस इस बात पर है कि हम कैसे एक ऐसा सिस्टम बनाएं, जिसमें सभी लोगों को गर्मी से राहत मिल सके, एनर्जी बचाई जा सके और साथ ही हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहे. इंडियन एक्सप्रेस के कॉलम में इस मुद्दे पर दोनों पक्षों (पक्ष और विपक्ष) का विचार पेश किया गया है. उसी के आधार पर हमने ये आर्टिकल लिखा है.
सरकार का फैसला, वक्त की जरूरत
पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले एक्सपर्ट चंद्रा भूषण का मानना है कि एसी पर टंपरेचर कैप लगाने का ये प्रस्ताव एक सिंपल रूल नहीं है, बल्कि ये एक बड़ा कदम है जिससे भारत में एनर्जी पॉलिसी और डेवलपमेंट से जुड़े इश्यूज़ पर चर्चा शुरू हो सकती है. उनका कहना है कि जैसे-जैसे शहरीकरण और मिडिल क्लास बढ़ रहा है, वैसे-वैसे एसी की डिमांड भी तेज़ी से बढ़ रही है. उदाहरण के लिए, साल 2022 में करीब 7.5 मिलियन एसी बिके थे और 2024 में यह डबल होकर 15 मिलियन हो चुके हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर यही ट्रेंड रहा तो 2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा एसी मार्केट बन जाएगा.
भूषण बताते हैं कि आज भी भारत में सिर्फ 30% घरों में एसी है, लेकिन गर्मियों में पूरे देश की आधी बिजली सिर्फ एसी चलाने में खर्च हो जाती है. ये सोचने वाली बात है कि जैसे-जैसे एसी बढ़ेंगे, हमारी बिजली की खपत भी उतनी ही बढ़ेगी. इसका एक सीधा असर यह होता है कि हमें ज्यादा कोयले से बिजली बनानी पड़ती है, जिससे पॉल्यूशन और क्लाइमेट चेंज की समस्या और बड़ी हो जाती है.
भूषण का मानना है कि अब एसी कोई लग्ज़री नहीं रह गया है. यह हेल्थ, काम करने की क्षमता और सामाजिक संतुलन के लिए ज़रूरी बन गया है. इसलिए इस तरह के सुझाव, जैसे टंपरेचर की लिमिट, जरूरी हैं… ताकि हम एक बड़ी बहस की शुरुआत कर सकें. जैसे कि कौन लोग हैं जिन्हें सबसे ज़्यादा ठंडी हवा की जरूरत है? क्या हम सब तक कूलिंग पहुंचा सकते हैं? क्या ऐसी टेक्नोलॉजी अपनाई जा सकती है जिससे एसी कम बिजली में ज्यादा काम करे?
भूषण यह भी सुझाव देते हैं कि भारत को ऐसी नई टेक्नोलॉजी पर काम करना चाहिए, जिससे एसी ज्यादा एनर्जी एफिशिएंट बन सकें. आज के फाइव स्टार एसी की तुलना में नई टेक्नोलॉजी वाले एसी पांच गुना कम बिजली खर्च कर सकते हैं. अगर सरकार चाहे तो सब्सिडी, रेगुलेशन और मार्केट सपोर्ट से इस दिशा में तेज़ी से बदलाव ला सकती है.
यह सतही हल, असली प्रॉब्लम वही की वही रहेगी
अब बात करते हैं इस प्रस्ताव के दूसरे पहलू की. कुछ एक्सपर्ट्स को लगता है कि एसी का टंपरेचर लिमिट करने से सिर्फ सतह पर हल निकलेगा, असली प्रॉब्लम वही की वही रहेगी. अर्थशास्त्री त्रिशा सरकार इसी बात को लेकर चिंता जताती हैं. वह दिल्ली की गर्मी का उदाहरण देती हैं, जब लोग थोड़ी सी ठंडक पाने के लिए मॉल, मेट्रो स्टेशन और ऐसी दुकानों में जाते हैं जहां एसी लगा हो. अगर एसी को 20 डिग्री से नीचे न करने का नियम लागू हो गया तो सबसे ज़्यादा दिक्कत उन्हीं लोगों को होगी जो पहले से ही गर्मी से परेशान हैं और जिनके पास ठंडी हवा पाने के सीमित रास्ते हैं.
त्रिशा पूछती हैं कि क्या ये नियम सच में असरदार होगा, जब हमारे शहरों की प्लानिंग ही इस तरह की हो कि हर जगह सीमेंट की इमारतें हैं, काले डामर की सड़कें हैं और पेड़ पौधे ना के बराबर हैं? ऐसे हालात में गर्मी तो और ज्यादा महसूस होगी और लोग मजबूरी में एसी पर ही डिपेंड रहेंगे.
उनका कहना है कि हमें सिर्फ एसी पर ध्यान देने के बजाय पूरे शहर की डिजाइन पर ध्यान देना चाहिए. अगर हम ऐसे शहर बनाएं जहां हरे-भरे पेड़ हों, पानी के स्रोत हों, सड़कों पर छांव हो, और ऐसी बिल्डिंग्स हों जो प्राकृतिक तरीके से ठंडी रहें, तो एसी की जरूरत अपने आप कम हो जाएगी. आज शहरों में कांच और सीमेंट से बनी ऊंची इमारतें गर्मी को कैद कर लेती हैं, जिससे शहर और ज्यादा गर्म हो जाते हैं और एसी की डिमांड और भी बढ़ती है.
त्रिशा यह भी कहती हैं कि एनर्जी क्राइसिस का हल सिर्फ टेक्नोलॉजी से नहीं निकल सकता. इसके लिए समाज और सिस्टम में बदलाव करना होगा. आज गरीबों के पास न ठंडी छांव है, न पानी, और न ही एसी लगाने की सुविधा. ऐसे में अगर एसी के टंपरेचर पर रोक लगाई जाती है तो इससे सबसे ज़्यादा नुकसान उन्हीं लोगों को होगा जो पहले से ही मुश्किल में हैं.
इसलिए जरूरी है कि सरकार सिर्फ एसी पर टंपरेचर कैप लगाने तक सीमित न रहे, बल्कि बड़े लेवल पर सोचे. हमें चाहिए कि हम एनर्जी सेविंग टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दें, शहरों की प्लानिंग को बेहतर बनाएं और सबके लिए कूलिंग की सुविधा सुनिश्चित करें, खासकर गरीब और कमजोर तबकों के लिए.
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