अब विदेशी कंपनियां भी भर सकेंगी भारत सरकार के टेंडर, छोटे ठेकेदारों पर कितना असर? जानिए

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सरकार जब भी कोई सड़क बनवाती है, रेल प्रोजेक्ट शुरू करती है या अस्पतालों के लिए उपकरण खरीदती है, तो यह सब कुछ सरकारी टेंडर या निविदा के ज़रिए होता है. अभी तक भारत की छोटी-बड़ी कंपनियां इन टेंडर के लिए अप्लाई करती हैं और उन्हीं में से किसी को इस काम की जिम्मेदारी मिलती है. मगर अब खबर है कि भारत सरकार अपने सरकारी खरीद क्षेत्र का एक हिस्सा विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जा रही है. खासकर अमेरिका की कंपनियों को अब लगभग 50 अरब डॉलर तक के सरकारी ठेकों के लिए बोली लगाने की अनुमति मिलने की संभावना है. ये ठेके मुख्य रूप से केंद्र सरकार से जुड़े होंगे, न कि राज्य या स्थानीय निकायों से.

बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस बाबत सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट छापी है, जिसमें यह जानकारी शेयर की गई है. ऐसे में, प्रश्न ये है कि अगर सरकारी ठेकों में विदेशी कंपनियों को भी मौका मिलने लगेगा, तो इसका असर छोटे व्यापारियों से लेकर आम कामगारों तक कितना असर होगा? हालांकि, इससे यह तो तय है कि विदेशी निवेश और तकनीक की भारत में एंट्री आसान हो जाएगी. भारत का कुल सरकारी खरीद बाजार हर साल लगभग 700 से 750 अरब डॉलर का है, जिसका एक बड़ा हिस्सा अब तक सिर्फ देश की ही कंपनियों के लिए आरक्षित था.

भारत और ब्रिटेन के बीच समझौता

हाल ही में भारत और ब्रिटेन के बीच एक समझौता हुआ है, जिसमें कुछ सीमित सरकारी क्षेत्रों में ब्रिटिश कंपनियों को भी सरकारी ठेकों में भाग लेने की इजाज़त दी गई है. इसी तर्ज पर अब अमेरिका के साथ भी बातचीत चल रही है. इस फैसले के पीछे सोच यह है कि अगर हम विदेशी कंपनियों को अपने बाज़ार में भागीदारी देते हैं, तो हमारे देश की कंपनियों को भी उनके बाजारों में अवसर मिलेंगे.

सरकार ने साफ किया है कि छोटे और मझोले कारोबारों की हिस्सेदारी को सुरक्षित रखा जाएगा. 25 फीसदी सरकारी खरीद का हिस्सा अभी भी सिर्फ छोटे उद्योगों के लिए आरक्षित रहेगा. डिफेंस और रेलवे जैसे क्षेत्रों में पहले से ही जब घरेलू विकल्प उपलब्ध नहीं होते, तब विदेशी कंपनियों से खरीद की जाती है.

अमेरिका कहता रहा- भारत में काम करना चुनौतीपूर्ण

अमेरिका ने लंबे समय से भारत की सार्वजनिक खरीद नीतियों को “सीमित अवसर” और “बदलते नियमों” के कारण चुनौतीपूर्ण बताया है. इस बीच भारत और अमेरिका एक ट्रेड डील पर बातचीत कर रहे हैं. इसी दिशा में हाल ही में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की वॉशिंगटन यात्रा हुई. अमेरिका ने फिलहाल भारत जैसे बड़े साझेदारों के लिए टैरिफ में 90 दिन की छूट दी है, और भारत इस समयसीमा के भीतर समझौता करना चाहता है.

छोटे ठेकेदारों के हित कैसे रहेंगे सुरक्षित

बता दें कि ब्रिटिश कंपनियां भारत में उन सरकारी टेंडरों में हिस्सा ले सकेंगी, जिनकी लागत 200 करोड़ रुपये (करीब 23.26 मिलियन डॉलर) से ज्यादा हो. इसके बदले में ब्रिटेन भारत की कंपनियों को भी अपने सार्वजनिक खरीद सिस्टम में समान अवसर देगा.

छोटे उद्योगों को लेकर सरकार ने भरोसा दिलाया है कि कुल सरकारी ऑर्डरों में से 25% ऑर्डर इन्हीं के लिए आरक्षित रहेंगे. यह जानकारी फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज (FISME) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने दी.

उन्होंने कहा, “अगर विदेशी कंपनियों को हमारे बाजार में हिस्सा लेने का मौका मिलता है, तो उसी तरह से हमारी कंपनियों को भी विदेशों में व्यापार का नया मौका मिल सकता है.”

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