नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की जोड़ी दुनिया की सबसे मजबूत और भरोसेमंद रणनीतिक टीमों में गिनी जाती है. अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बोल्टन भी इसे मानते हैं. Firstpost को दिए इंटरव्यू में बोल्टन का कहना है कि डोभाल जैसे अनुभवी और स्थिर सलाहकार पर पीएम मोदी का भरोसा भारत की विदेश और सुरक्षा नीति की सबसे बड़ी ताकत है.
बोल्टन ने इंटरव्यू में आगे कहा इसके ठीक उलट डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में एक भी ऐसा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नहीं रख सके जिस पर वह लगातार भरोसा कर पाते. ट्रंप प्रशासन में NSA बार-बार बदले गए, रणनीति अधूरी रही और फैसले जल्दबाजी में लिए गए. जॉन बोल्टन का मानना है कि ट्रंप सिर्फ उन्हीं लोगों को पसंद करते हैं जो उनकी बातों से सहमत हों. जबकि पीएम मोदी जैसे नेता सलाह और विशेषज्ञता की अहमियत समझते हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प और जॉन बोल्टन. (फाइल फोटो AFP)
मोदी-डोभाल की जोड़ी पर बोल्टन की तारीफ
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने Firstpost से खास बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी और अजीत डोभाल के रिश्ते को ‘सकारात्मक और स्थिर’ बताया. उन्होंने कहा, “डोभाल का असर रणनीतिक फैसलों में साफ दिखाई देता है. पीएम मोदी उन पर पूरा भरोसा करते हैं.”
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बोल्टन खुद अप्रैल 2018 से सितंबर 2019 तक ट्रंप प्रशासन में NSA रहे. वह ट्रंप के कार्यकाल में सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहने वाले सलाहकार थे. इसके बावजूद उन्होंने माना कि अमेरिका में इस स्तर की रणनीतिक स्थिरता कभी नहीं बन पाई. दूसरी ओर अजीत डोभाल मई 2014 से लगातार भारत के NSA हैं और देश की सुरक्षा नीति के सबसे अहम स्तंभ बन चुके हैं.
दिल्ली में उच्च स्तरीय बैठक के दौरान PM मोदी और अजीत डोभाल. (फोटो PTI)
ट्रंप को सलाह पसंद नहीं, सिर्फ सहमति चाहिए
जब Firstpost ने जॉन बोल्टन से पूछा कि डोनाल्ड ट्रंप वैसी ही स्थिरता क्यों नहीं बना पाए तो उन्होंने बड़ा बयान दिया. बोल्टन ने कहा, “ट्रंप ऐसे लोगों को पसंद करते हैं जो उनकी हां में हां मिलाएं. वो सलाह नहीं सुनना चाहते वह सिर्फ अपने फैसले पर समर्थन चाहते हैं.”
उन्होंने कहा कि एक जिम्मेदार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का काम सिर्फ समर्थन देना नहीं, बल्कि यह पूछना होता है कि क्या आपने सभी विकल्पों पर विचार किया? क्या आपने इसके फायदे और नुकसान को परख लिया है?
बोल्टन ने कहा, “आखिरकार निर्णय राष्ट्रपति का ही होता है लेकिन यह जरूरी है कि वह फैसला पूरी जानकारी और सोच-विचार के आधार पर ले. दुर्भाग्य से ट्रंप ऐसा नहीं करते. यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है.”
व्हाइट हाउस में उथल-पुथल, सिग्नल चैट स्कैंडल से हटा NSA
डोनाल्ड ट्रंप की प्रशासनिक शैली कितनी अस्थिर थी इसका उदाहरण उनके द्वारा बार-बार NSA बदलने से मिलता है. माइक वाल्ट्ज को कार्यकाल के कुछ ही महीनों में पद से हटा दिया गया. इसके पीछे ‘सिग्नल चैट लीक’ स्कैंडल था. इसमें गलती से अमेरिकी सैन्य योजना सार्वजनिक हो गई. इसके बाद ट्रंप ने विदेश सचिव मार्को रुबियो को कार्यवाहक NSA नियुक्त किया. लेकिन यह नियुक्ति भी लंबे समय तक नहीं चल सकी. यह घटनाएं दिखाती हैं कि ट्रंप प्रशासन में रणनीतिक स्थिरता की कितनी कमी रही.
माइक वाल्ट्ज को कार्यकाल के कुछ ही महीनों में पद से हटा दिया गया. (फाइल फोटो AFP)
भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर ट्रंप की जल्दबाजी
भारत और पाकिस्तान के बीच जब तीन दिनों तक तनाव के बाद सीजफायर हुआ तो डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर तुरंत इसका क्रेडिट ले लिया. लेकिन भारत ने तुरंत स्पष्ट किया कि यह समझौता पूरी तरह से द्विपक्षीय था और इसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी. विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने नीदरलैंड्स की मीडिया NOS को दिए इंटरव्यू में साफ कहा, “10 मई को पाकिस्तानी सेना ने गोलीबारी रोकने का प्रस्ताव भेजा और हमने उसे स्वीकार किया. अमेरिका केवल एक पर्यवेक्षक की भूमिका में था जो हर संघर्ष के दौरान देशों से बातचीत करता है.”
भारत और पाकिस्तान के बीच जब तीन दिनों तक तनाव के बाद सीजफायर हुआ तो डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर तुरंत इसका क्रेडिट ले लिया. (फोटो AP)
जयशंकर ने दो टूक कहा, “अमेरिका और अन्य देश चिंताएं व्यक्त करते हैं लेकिन निर्णय भारत और पाकिस्तान ने खुद लिया.”
ट्रंप को श्रेय लेने की जल्दी
जब Firstpost ने पूछा कि क्या ट्रंप ने समय से पहले क्रेडिट ले लिया तो जॉन बोल्टन ने कहा, “ट्रंप हमेशा ऐसा ही करते हैं. उन्हें सबका ध्यान अपनी ओर खींचना पसंद है चाहे वह निर्णय उन्होंने लिया हो या नहीं.” बोल्टन ने कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हुआ तो वह सैन्य स्तर की बातचीत से हुआ न कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से. उन्होंने कहा, “ट्रंप जब भी शामिल होते हैं तो वह खुद को ‘हीरो’ दिखाना चाहते हैं भले ही हकीकत कुछ और हो.”
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