नई दिल्ली. कहीं ऊंचे पहाड़ों का सीना चीरकर, तो कही गहरी घाटी को पाटकर तो कहीं दलदली और चट्टानी जमीन पर ट्रैक बिछाकर, इन तमाम चुनौतियों के बीच कोंकण रेलवे का निर्माण किया गया है. इतना ही नहीं भूस्खलन, बाढ़ और घने जंगलों में जानवरों का खतरा यहां लगातार रहा है. यह रेलवे मुंबई (रोहा) से मंगलौर (थोकुर) तक 741 किलोमीटर लंबी है, जो करीब 27 साल बाद भारतीय रेलवे में मर्ज होने जा रही है.
कोंकण रेलवे के निर्माण की शुरुआत 1990 में हुई और करीब आठ साल बाद 26 जनवरी 1998 को पहली ट्रेन पूरी तरह तैयार रेल लाइन पर चली. यह लाइन महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक को जोड़ती है.
इसके निर्माण में पांच बड़े चैलेंज
पहला पश्चिमी घाट में ऊंचे पहाड़, गहरी घाटियां, चट्टानी जमीन और दलदली क्षेत्र में ट्रैक का निर्माण बड़ी चैलेंज था. क्योंकि यहां पर 160 किमी/घंटा की गति के लिए लगभग सपाट ट्रैक चाहिए था. इसके लिए 2,116 पुल और 92 सुरंगें बनानी पड़ीं. रत्नागिरी के पास सबसे लंबी सुरंग 6.561 किमी की है. दूसरा भारी बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ आम थी. खासकर नरम मिट्टी वाली नौ सुरंगों को खोदना मुश्किल था, क्योंकि मिट्टी पानी से भरी थी. बारिश में कई बार सुरंगें ढह गईं, जिससे कई मजदूरों की जान गई. तीसराट्रैक निर्माण के समय घने जंगलों में जंगली जानवरों का खतरा था. मॉनसून और दलदली मिट्टी ने काम को और मुश्किल बनाया. चौथा इस प्रोजेक्ट के लिए 43,000 भूस्वामियों से जमीन लेनी पड़ी. यह काम एक साल में पूरा हुआ. पांचवां इस प्रोजेक्ट के लिए चार साल की समयसीमा तय की गयी थी. इसके लिए नई तकनीकों का उपयोग किया गया. भारत में पहली बार जैसे नदियों पर पियर्स बनाकर और क्रेन से पुल बनाने जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया.
741 किमी.लंबा है रेल नेटवर्क.
कोंकण रेलवे का इतिहास
कोंकण रेलवे भारत के पश्चिमी तट पर मुंबई को मंगलौर और उससे आगे जोड़ने के लिए बनाया गया था. मुंबई से इस इलाके में कोई सीधी रेल सुविधा नहीं थी. इस वजह से चेन्नई के रास्ते लंबा चक्कर लगाना पड़ता था. इस रेलवे का मुख्य उद्देश्य कोंकण क्षेत्र के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, पर्यटन को प्रोत्साहन देना और बंदरगाहों, शहरों और कस्बों को जोड़ना था.
मेट्रोमैन ने ही बनाया है इसे
कोंकण रेलवे का निर्माण बहुत मुश्किल था, क्योंकि यह पश्चिमी घाट के कठिन इलाकों से होकर गुजरती है. इसकी जिम्मेदारी रेलवे के इंजीनियर ई. श्रीधरन यानी मेट्रोमैन को सौंपी गयी. उन्होंने ने सफलता पूर्वक काम पूरा किया.
लंबे समय से मांग के बाद बनी थी यह
कोंकण के लोगों की इस इलाके के रेल से जोड़ने की मांग लंबे समय से थी. बैरिस्टर नाथ पाई और प्रो. मधु दंडवते ने इस रेल लाइन के बहुत प्रयास किए. यह रेलवे भारत के रेल नक्शे में एक “महत्वपूर्ण कड़ी” थी, जो पश्चिमी तट को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती थी. व्यापार, पर्यटन और यातायात के लिए बहुत जरूरी है.
छोटे बड़े 2,116 पुल है इस लाइन पर.
प्रकृति के हर रंग के नजारे इस लाइन में
कोंकण रेलवे से सफर करने पर प्रकृति के हर रंग के नजारे देखने को मिलते हैं. पहाड़, झरने, बारिश, घना जंगल, नदियां सभी कुछ आपको ट्रेन से सफर करने में देखने को मिलेगा. इस वजह से यह रेल लाइन यात्रियों की पसंदीदा है.
वंदेभारत से लेकर तेजस सभी इस रूट में
मौजूदा समय कोंकण रेलवे पर कई यात्री और मालगाड़ियां मिलाकर करीब 50 ट्रेनें चलती हैं. जिनमें वंदे भारत एक्सप्रेस, तेजस एक्सप्रेस, कोंकण कन्या एक्सप्रेस, मांडवी एक्सप्रेस, जैसी प्रमुख ट्रेनें शामिल हैं. इसके अलावा, मालगाड़ियां और रोल-ऑन/रोल-ऑफ (RORO) सेवाएं भी चलती हैं, जो ट्रकों को रेल पर ले जाती हैं.
जल्द होगा विलय
महाराष्ट्र सरकार ने कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड के भारतीय रेलवे में विलय के लिए अपनी सहमति दे दी है. जल्द ही कोंकण रेलवे भारतीय रेलवे में विलय होगा. माना जा रहा है कि सेवाएं और बेहतर होंगी. यह विलय क्षेत्र के आर्थिक विकास और रेल सुविधाओं को बढ़ाने में मदद करेगा. क्योंकि अभी भारतीय रेलवे से आर्थिक मदद न के बराबर मिलती थी.
stock market, share market, market update, trading news, trade news, nifty update,bank nifty, oxbig news, oxbig news network, hindi news, hindi news, business news, oxbig hindi news
English News