कर्ज में डूब रहा अमेरिका! मोदी ने 2 मामलों में ट्रंप को पीछे छोड़ा, दुनिया पर क्‍या असर

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नई दिल्‍ली. एक तरफ है अमेरिका, जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है और दूसरी ओर है भारत जो सबसे तेज बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍था वाला देश है. दुनियाभर की रेटिंग एजेंसियां जहां भारत की तेज विकास दर का गुणगान और अर्थव्‍यवस्‍था के मजबूत आधार की सराहना कर रही हैं, वहीं मूडीज और फिच जैसी दुनिया की टॉप रेटिंग एजेंसियों ने अमेरिका की सॉवरेन रेटिंग यानी अर्थव्‍यवस्‍था की साख को ही घटा दिया है. कुल मिलाकर मौजूदा हालात ये है कि ट्रंप के नेतृत्‍व वाला अमेरिका अभी दबाव में चल रहा, जबकि पीएम मोदी के नेतृत्‍व वाला भारत पूरी दुनिया में डंका बजा रहा है. उस पर भी 2 ऐसे मामले हैं, जहां पीएम मोदी ने राष्‍ट्रपति ट्रंप को भी मीलों पीछे छोड़ दिया है.

सबसे पहले बात करते हैं अमेरिका के मौजूदा हालात की, तो यहां दुनिया के 3 सबसे प्रतिष्ठित संस्‍थानों का उल्‍लेख करेंगे. पहला टॉप रेटिंग एजेंसी मूडीज का, जिसने अमेरिका की सॉवरेन रेटिंग को Aaa से घटाकर कई साल बाद Aa1 कर दिया है. मूडीज ने साल 1919 में अमेरिका को Aaa की रेटिंग दी थी. अमेरिका की सॉवरेन रेटिंग 2008 की भयंकर मंदी में भी नहीं घटाई गई थी, जिसे अब घटाया गया है. दूसरा संस्‍थान है ग्‍लोबल रेटिंग एजेंसी फिच, जिसने साल 2023 में ही अमेरिका की सॉवरेन रेटिंग को घटाकर Aa1 कर दिया था. इन दोनों ही रेटिंग एजेंसियों से ज्‍यादा चिंताजनक बात है, आईएमएफ की अमेरिका को दी गई चेतावनी. आईएमएफ ने कहा है कि अमेरिका पर कर्ज का बोझ उसकी विकास दर से कहीं ज्‍यादा तेजी से बढ़ रहा है, जो खतरे की घंटी है.

अमेरिका और भारत पर कितना कर्जपीएम मोदी जिन 2 बातों में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप से आगे हैं, उनमें पहला है देश पर लदा कर्ज. इस मामले में देखें तो अमेरिका पर अभी करीब 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है, जबकि फोर्ब्‍स के अनुसार उसकी कुल इकनॉमी साल 2025 में 30.51 ट्रिलियन डॉलर है. इसका मतलब है कि अमेरिका पर उसकी जीडीपी के मुकाबले 117 फीसदी कर्ज लदा है और यही उसके सभी दुखों का कारण भी है. मूडीज ने चेतावनी दी है कि साल 2034 तक अमेरिका पर कुल कर्ज उसकी जीडीपी का 134 फीसदी पहुंच जाएगा. इस मामले में भारत को देखें तो अभी 2.96 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है, जबकि 2025 में भारत की जीडीपी 4.19 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है. इस तरह जीडीपी पर कर्ज का अनुमान 81 फीसदी के आसपास है. सरकार का लक्ष्‍य है कि 2031 तक इसे घटाकर 51 फीसदी पर लाया जाए.

दोनों देशों का राजकोषीय घाटाकिसी भी अर्थव्‍यवस्‍था की मजबूती और टिकाऊपन को नापने का सबसे आसान तरीका है, उसके राजकोषीय घाटे को देखना. राजकोषीय घाटे से मतलब है कि उस देश की कमाई कितनी है और उसका खर्च कितना है. अगर उसका खर्चा, कमाई से ज्‍यादा रहता है तो इसके अंतर को ही राजकोषीय घाटा कहते हैं. इस मामले में जनवरी, 2025 तक भारत का राजकोषीय घाटा 11.70 लाख करोड़ रुपये रहा, जो उसकी जीडीपी का 4.8 फीसदी है. दूसरी ओर, अमेरिका का राजकोषीय दिसंबर, 2024 तक 154 लाख करोड़ रुपये था, जो उसकी जीडीपी का 7 करीब 7 फीसदी बैठता है. जाहिर है कि इन दोनों ही मामलों में पीएम मोदी की अगुवाली भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था ज्‍यादा बेहतर स्थिति में है.

अमेरिका पर क्‍यों बढ़ रहा जोखिमयहां अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ की डिप्‍टी मैनेजिंग डायरेक्‍टर गीता गोपीनाथ की बातों का उल्‍लेख करेंगे. गोपीनाथ ने पिछले दिनों अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा था कि उसकी इकनॉमी पर कर्ज बढ़ने की दर विकास दर से भी कहीं ज्‍यादा है. हालत ये है कि हर 3 महीने में अमेरिका पर 1 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज बढ़ जाता है. उसकी जीडीपी पर कर्ज का अनुपात दूसरे विश्‍व युद्ध से भी ज्‍यादा पहुंचने का अनुमान है. यहां तक कि महामंदी के दौर में भी हालात इतने बुरे नहीं थे.

फेल हो रहा ट्रंप का घटिया प्‍लानडोनाल्‍ड ट्रंप ने इस स्थिति से निपटने के लिए टैक्‍स घटाने और डिरेगुलेशन का पैंतरा अपनाया है. उनका मानना है कि इससे अमेरिका की ग्रोथ रेट बढ़ेगी और राजकोषीय घाटा काबू में आएगा. लेकिन, न तो ग्‍लोबल रेटिंग एजेंसियां और न ही निवेशक उनकी इस बात से सहमत हैं. यहां तक कि उनके बड़े निवेशकों ने अमेरिका के सरकारी बॉन्‍ड को बेचना भी शुरू कर दिया है. ऊपर से ट्रंप ने ट्रेड वॉर छेड़कर इस स्थिति को और गंभीर बना लिया है.

दुनिया को गर्त में न धकेल दें डोनाल्‍डअमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था पर बढ़ते कर्ज का मतलब है कि वहां होम लोन से लेकर हर तरह का कर्ज महंगा होगा और महंगाई भी चरम पर जा सकती है. जाहिर है कि अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था पर बढ़ते इस जोखिम का खामियाजा पूरी दुनिया को चुकाना होगा और इस बात का अंदाजा राष्‍ट्रपति ट्रंप को भी हो चुका है. शायद यही कारण है कि उन्‍होंने कुर्सी संभालते ही टैरिफ लगाना शुरू कर दिया, ताकि अमेरिका का निर्यात पूरी दुनिया में आसान, सस्‍ता और तेजी से बढ़ाया जा सके. फिलहाल, उनकी रणनीति किसी अंजाम तक जाती नहीं दिख रही और 2008 की तरह अमेरिका एक बार फिर दुनिया में भूचाल लाने जैसी स्थिति बना रहा है.

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