नॉर्थ कोरिया (North Korea) की साइबर गतिविधियों पर आई एक नई रिपोर्ट ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. अमेरिकी साइबर सिक्योरिटी फर्म DTEX की मानें, तो उत्तर कोरिया के IT वर्कर्स एक संगठित अपराध सिंडिकेट की तरह काम कर रहे हैं, कुछ वैसा ही जैसे अमेरिका में कभी “ला कोसा नोस्ट्रा” माफिया हुआ करता था. फर्क सिर्फ इतना है कि वहां पांच गैंग होते थे, यहां सिर्फ एक है और वो है किम जोंग उन की सत्ता.
बचपन से तैयार होते हैं ‘डिजिटल सिपाही’
नॉर्थ कोरिया में बच्चों को स्कूल के दिनों में ही चिन्हित कर लिया जाता है. जो भी बच्चा मैथ या साइंस में बेहतर प्रदर्शन करता है, उसे साइबर आर्मी या IT वर्कर बनने के लिए तैयार किया जाता है. ये बच्चे किम सुंग इल मिलिट्री यूनिवर्सिटी और कुमसॉन्ग अकैडमी जैसी संस्थानों में पढ़ते हैं और वहीं से बनते हैं भविष्य के हैकर्स, कोडर्स और डार्क वेब के मास्टर्स.
‘ब्रो नेटवर्क’ का पूरा खेल
इन वर्कर्स के बीच एक तरह का ‘ब्रो नेटवर्क’ चलता है. पुराने स्कूल फ्रेंड्स एक-दूसरे को टिप्स देते हैं कि किस प्रोजेक्ट में पैसे ज़्यादा मिलेंगे या कौन सा क्लाइंट चुपचाप पेमेंट कर देगा. लेकिन ये नेटवर्क बाहर से जितना दोस्ताना दिखता है, अंदर से उतना ही टॉक्सिक है. हर किसी को अपने कोटे के डॉलर कमाने हैं, नहीं तो सज़ा तय है.
कमाई का टारगेट और पेनल्टी
2025 में नॉर्थ कोरिया ने अपने चीन में बैठे IT वर्कर्स की मंथली कमाई का टारगेट डबल कर दिया. अब एक वर्कर अगर 5000 डॉलर कमाता है, तो खुद सिर्फ 200 डॉलर रख सकता है. बाकी सब सरकार को जाता है. DTEX की रिपोर्ट बताती है कि ये वर्कर्स रोज़ाना 16 घंटे तक काम करते हैं, सप्ताह में छह दिन, बिना छुट्टी के.
टीम मेंबर्स में भी कंपटीशन
वर्कर्स को 4-5 लोगों की टीम में बांट कर उन्हें आपस में कम्पीट कराया जाता है. जो ज़्यादा डॉलर लाता है, उसे इनाम या छुट्टी मिलती है, जो पीछे रह जाता है, उसे मानसिक तनाव, मारपीट और कभी-कभी शारीरिक सज़ा तक झेलनी पड़ती है.
जॉब प्लेटफॉर्म्स पर ‘साइबर घुसपैठ’
ये IT वर्कर्स अमेरिका और यूरोप की बड़ी कंपनियों में फर्जी पहचान बनाकर नौकरी हासिल करते हैं. खासकर रिमोट जॉब्स. उन्होंने अमेरिकी नाम, फेक ID और डॉक्यूमेंट्स का इस्तेमाल कर कंपनियों में घुसपैठ की है. जैसे ही कोई नया जॉब पोस्ट होता है, 3 घंटे के अंदर कोई ना कोई नॉर्थ कोरियन वर्कर उस पर अप्लाई कर देता है, खासकर क्रिप्टो या सॉफ्टवेयर से जुड़े कामों में.
सिर्फ नौकरी नहीं, हाइली ऑर्गनाइज़्ड स्कीम है ये
ये वर्कर्स ना केवल काम करते हैं, बल्कि साइबर हैकर्स यानी APT (Advanced Persistent Threat) ग्रुप्स के साथ जानकारी भी शेयर करते हैं. APT ग्रुप्स कोरियन पीपल्स आर्मी के तहत काम करते हैं और अब तक 3 बिलियन डॉलर से ज़्यादा की क्रिप्टो करेंसी चुरा चुके हैं. वहीं, IT वर्कर्स हर साल 250 मिलियन से 600 मिलियन डॉलर का योगदान देते हैं.
सरवाइवल है असली मकसद
DTEX की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि इन वर्कर्स की प्रेरणा कोई विचारधारा नहीं, बल्कि ज़िंदगी की ज़रूरतें हैं. किम जोंग उन के शासन में ‘देशभक्ति’ का मतलब है टारगेट पूरा करना, चाहे जैसे भी. अगर कोई अपने कोटे से कम पैसे भेजता है, तो उस पर देशद्रोही होने का आरोप लग सकता है और उसे अपने साथियों से ही शिकायत मिल सकती है.
डर, लालच और हिंसा का नेटवर्क
यह पूरा मॉडल डर, लालच और हिंसा पर आधारित है. बिल्कुल किसी माफिया सिंडिकेट की तरह. फर्क सिर्फ इतना है कि यहां बंदूक की जगह कोडिंग है, लेकिन नतीजा उतना ही खतरनाक. रिपोर्ट में एक फोटो में वर्कर्स को छोटे-से कमरे में काम करते हुए दिखाया गया है, जहां दीवार पर कैमरा लगा हुआ है, सरकार हर गतिविधि पर नज़र रखती है.
‘किम के बारे में कुछ गलत बोलो’
इस माफिया मॉडल को पहचानने के लिए अमेरिका के कुछ स्टार्टअप अब इंटरव्यू में अजीब सवाल पूछते हैं, जैसे- “किम जोंग उन के बारे में कुछ बुरा कहो.” असली नॉर्थ कोरियन वर्कर ये करने से डरते हैं, क्योंकि अगर उनकी पहचान उजागर हो गई, तो अंजाम घातक हो सकता है.
ये सिर्फ कोड नहीं, मिशन है
नॉर्थ कोरिया का ये डिजिटल क्राइम मॉडल किसी आम हैकिंग ऑपरेशन से कहीं आगे है. ये एक माफिया नेटवर्क है, जो पूरी दुनिया में फैला हुआ है और जिसका हर वर्कर एक मिशन पर है. पैसे कमाओ, सिस्टम में बने रहो, वरना मिट जाओ.
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