नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिग्गज टेक कंपनी ऐपल को अपने प्रोडक्ट भारत में न बनाने को कहा है. ट्रंप का कहना है कि ऐपल को अमेरिका को अपना मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहिए. ट्रंप की इस सलाह के बाद से ही यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या Apple भारत में अब अपने आईफोन (iPhone) और अन्य प्रोडक्ट्स नहीं बनाएगी? हालांकि, बाजार जानकारों का मानना है कि भारत छोड़ना ऐपल के लिए घाटे का सौदा साबित होगा, इसलिए टिम कुक भारत में कपंनी का प्रोडक्शन बंद करने की गलती कभी नहीं करेंगे. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि अमेरिका प्रोडक्शन शिफ्ट होन से Apple के मुनाफे पर भारी असर पड़ेगा.
ट्रंप ने हाल ही में कतर दौरे के दौरान Apple के सीईओ टिम कुक से मुलाकात की और उनसे भारत में निर्माण कार्य का विस्तार रोकने की अपील की. उन्होंने कहा, “मैंने टिम कुक से कहा कि मैं नहीं चाहता कि आप भारत में निर्माण करें. भारत अपनी देखभाल खुद कर सकता है.” यह बयान उस समय आया जब ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने का दावा किया, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया.
भारत में असेंबल हो रहे हैं आईफोन
Apple अपने कुल iPhone उत्पादन का लगभग 15 फीसदी भारत में असेंबल कर रहा है, जबकि शेष 85 प्रतिशत उत्पादन अभी भी चीन में होता है. हालांकि यह हिस्सा छोटा लग सकता है, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक टिप्पणियों ने इस मुद्दे को और भी गर्मा दिया है. ट्रंप लगातार अमेरिकी कंपनियों पर दबाव बना रहे हैं कि वे अपना निर्माण कार्य अमेरिका में वापस लाएं ताकि अमेरिकी लोगों को रोजगार मिल सके.
भारत को एक आईफोन से 30 डॉलर की आमदनी
श्रीवास्तव का कहना है कि भारत को एक iPhone की असेंबली से केवल 30 डॉलर से भी कम की आमदनी होती है. इसमें से बड़ा हिस्सा उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI) के तहत Apple को सब्सिडी के रूप में वापस चला जाता है. असेंबली की तुलना में असली मुनाफा उन देशों को होता है जो डिज़ाइन, सॉफ्टवेयर और प्रमुख पुर्जों की आपूर्ति करते हैं. उदाहरण के लिए, अमेरिका को Apple के ब्रांड और सॉफ्टवेयर के जरिए 450 डॉलर, Qualcomm और Broadcom जैसी अमेरिकी कंपनियों को 80 डॉलर, ताइवान को चिप निर्माण से 150 डॉलर, दक्षिण कोरिया को OLED डिस्प्ले और मेमोरी चिप्स से 90 डॉलर और जापान को कैमरा मॉड्यूल से 85 डॉलर का लाभ होता है. वहीं, भारत और चीन को सिर्फ 30 डॉलर मिलते हैं जो iPhone की कीमत का 3% भी नहीं है.
रोजगार के लिहाज से बड़ा फायदा
हालांकि असेंबली से मिलने वाला आर्थिक लाभ कम है, लेकिन रोजगार के लिहाज से इसका असर बड़ा है. भारत में लगभग 60,000 लोग और चीन में करीब 3 लाख लोग iPhone असेंबली से जुड़े हुए हैं. यही कारण है कि ट्रंप इस क्षेत्र को अमेरिका में वापस लाने की मांग कर रहे हैं. श्रीवास्तव का कहना है कि ट्रंप की यह मांग तकनीकी क्षमताओं के लिए नहीं, बल्कि रोजगार बढ़ाने के उद्देश्य से है.
अमेरिका में बढ जाएगा खर्च
अगर Apple यह कदम उठाता है, तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. भारत में Apple असेंबली कर्मचारियों को औसतन 290 डॉलर प्रति माह वेतन देता है, जबकि अमेरिका में यह लागत न्यूनतम मजदूरी के कारण 2,900 डॉलर प्रति कर्मचारी प्रति माह तक पहुंच सकती है. इसका असर iPhone की प्रति यूनिट असेंबली लागत पर पड़ेगा, जो 30 डॉलर से बढ़कर 390 डॉलर तक हो सकती है. इससे Apple का प्रति यूनिट मुनाफा 450 डॉलर से घटकर केवल 60 डॉलर रह जाएगा. अगर Apple इस नुकसान की भरपाई के लिए iPhone की कीमत बढ़ाता है, तो पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे अमेरिकी ग्राहक इससे नाराज़ हो सकते हैं.
श्रीवास्तव सवाल करते हैं कि क्या Apple के सीईओ टिम कुक देशभक्ति के नाम पर अपने मुनाफे की बलि देंगे या फिर व्यावसायिक हितों को प्राथमिकता देंगे? वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान भारत के साथ बेहतर व्यापार सौदे की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. खास बात यह है कि ट्रंप ने चीन में Apple के उत्पादन को लेकर ऐसा कोई बयान नहीं दिया, जबकि 85% iPhones आज भी वहीं बनते हैं. इस वजह से व्यापार विशेषज्ञों के बीच सवाल उठ रहे हैं.
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