हम आम लोगों की ज़िंदगी अक्सर एक रूटीन में बंधी होती है. सुबह जल्दी उठना, नहा-धोकर नौकरी की भागदौड़, समय पर डेडलाइन पूरी करना, और महीने के अंत में सैलरी का इंतजार. यही तो आम रूटीन है. ऐसे में कई लोग यह सोचते हैं कि काश काम कुछ कम होता और सैलरी वही रहती, लेकिन ऐसा होता नहीं. हालांकि एकाध उदाहरण तो मिल ही जाते हैं. जैसे एक रेडिट यूजर ने अपनी ऐसी स्थिति को बयां किया है कि आप कहेंगे- यही तो चाहिए! लेकिन वह इंसान उससे खुश नहीं है. वह खालीपन का शिकार हो रहा है.
रेडिट यूजर ने लिखा कि वो हर महीने सिर्फ एक सप्ताह ही अपना असली काम करता है और बाक़ी का समय टीवी देखने, पॉडकास्ट सुनने और इंटरनेट सर्फिंग करते हुए बिताता है. वह 66 लाख रुपये सालाना कमाता है. उसने बताया कि जब उसने यह काम शुरू किया था, तब उसे बहुत मुश्किल होती थी क्योंकि उसे उस क्षेत्र की कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं मिली थी. लेकिन उसने हार नहीं मानी. लगातार मेहनत से उसने काम में महारत हासिल कर ली.
बिना गलती के करता है फास्ट टाइपिंगउसने बताया कि अब वह 75 शब्द प्रति मिनट की रफ्तार तेजी और सफाई से टाइप करता है. गलतियां न के बराबर होती हैं. उसने पुराने और भारी-भरकम सॉफ्टवेयर की जगह एक्सेल जैसी आसान चीज़ों को अपनाया और अपनी रिपोर्ट्स को इतना साफ-सुथरा बना दिया कि कंपनी में हर कोई उससे खुश है. कभी कोई उसकी शिकायत नहीं करता.
आज वह अपनी कंपनी का सबसे अच्छा कर्मचारी है. क्लाइंट्स के साथ उसके रिश्ते बेहतरीन हैं, क्योंकि वह हर काम समय पर पूरा करता है और काम बिलकुल परफेक्ट होता है. फिर भी, उसके अंदर एक खालीपन है. उसने बताया कि पहले वह बहुत पढ़ता था, एक साल में 200 किताबें पढ़ डालीं. उसने जिन विषयों में दिलचस्पी थी, उनमें गहराई से रिसर्च की. लेकिन अब वह बोर हो चुका है. उसे लग रहा है कि सब कुछ ठीक से करने के बाद भी वह पहले से ज्यादा थका हुआ और खाली महसूस कर रहा है. वह कहता है कि जो उसके साथ हो रहा है वह quiet quitting यानी चुपचाप काम से दूरी बनाने से भी आगे की बात है. यह असल में silent burnout है, यानी कुछ किए बिना अंदर ही अंदर थक जाना.
यूजर्स ने लिखा- ऐसी जॉब तो हम चाहते हैंउसकी पोस्ट पर इंटरनेट पर ढेरों प्रतिक्रियाएं आईं. किसी ने कहा, “तुम वही लाइफ जी रहे हो, जो मेरा सपना है.” किसी ने पूछा, “ऐसी नौकरी है कहां?” किसी ने सलाह दी, “एक और रिमोट जॉब ले लो, वरना दिमाग खाली हो जाएगा.”
एक व्यक्ति ने कहा, “मैं भी 85 हजार डॉलर कमाता हूं और हफ्ते में सिर्फ 4-8 घंटे का असली काम करता हूं. लेकिन यह बेहद उबाऊ हो गया है.” किसी ने चेतावनी भी दी और लिखा, “मैं भी उस दौर से गुज़र चुका हूं. तब सब अच्छा लगता था, लेकिन ये बहुत लंबे समय तक नहीं चलता. इसका मजा उठाओ, जब तक कि ये है.”
इस शख्स की कहानी ये सोचने पर मजबूर करती है कि असली सुकून सिर्फ पैसे या कम काम में नहीं है. जब इंसान का मन और दिमाग दोनों खाली हो जाते हैं, तो बोरियत और बेचैनी शुरू हो जाती है. जीवन में संतुलन और उद्देश्य का होना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना पैसा कमाना.
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