Kedarnath Yatra 2025: हर साल होने वाली भव्य उत्तराखंड की केदारनाथ यात्रा, जहां लाखों की संख्या में लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं, इस साल 30 अप्रैल से शुरू हुई है. बताया जा रहा है कि केदारनाथ यात्रा की पैदल यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की बीमारी से मौत के बाद उनके संचालन पर लगाई गयी रोक फिलहाल जारी रहेगी.
क्यों लिया गया रोक का फैसला?
प्रदेश के पशुपालन सचिव डॉ. बी.वी.आर.सी पुरुषोत्तम ने बुधवार को यहां मीडिया को बताया कि केदार घाटी में घोड़े-खच्चरों में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्थानीय लोगों, घोड़े-खच्चर व्यवसायियों और संगठनों के यात्रा मार्ग पर उनके संचालन पर लगी रोक को आगे बढाने का अनुरोध किया गया है ताकि जानवरों में संक्रमण बढ़ने की स्थिति उत्पन्न न हो. उन्होंने बताया कि पैदल यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के दुबारा संचालन के लिए जिला प्रशासन के स्थानीय स्तर पर निर्णय लिया जाएगा.
सोमवार को मरे 3 घोड़े खच्चर
पुरुषोत्तम ने बताया कि रविवार और सोमवार को यात्रा में 13 घोड़े खच्चरों के मरने की सूचना मिली हुई थी. उन्होंने बताया कि इनमें से आठ घोड़ों की मृत्यु ‘डायरिया’ और पांच घोड़ों की मृत्यु ‘एक्यूट कोलिक’ से हुई है. उन्होंने कहा कि विस्तृत रिपोर्ट के लिए इन घोड़ों के नमूने उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) भेजे गए हैं.
अधिकारी ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए 22 से ज्यादा चिकित्सकों की टीम को यात्रा मार्ग में तैनात किया गया है. उन्होंने कहा कि अस्वस्थ घोड़े-खच्चरों को यात्रा मार्ग में नहीं चलने दिया जाएगा जबकि स्वस्थ घोड़ों के नमूनों की जांच रिपोर्ट नेगेटिव आने पर ही उन्हें यात्रा मार्ग में संचालित करने की अनुमति दी जाएगी.
26 दिनों में 16 हजार घोड़ों की जांच की गई
पुरुषोत्तम ने बताया कि एक माह पहले रुद्रप्रयाग जिले के दो गांवों में घोड़े-खच्चरों के नमूने लिए गए थे जिनमें से कुछ घोड़ों में एक्वाइन इन्फलूएंजा के लक्षण मिले थे. उन्होंने बताया कि इसके बाद 30 अप्रैल तक 26 दिनों में रिकॉर्ड 16 हजार घोड़ों की जांच की गयी थी.
उन्होंने बताया कि इनमें से 152 घोड़े-खच्चरों के सीरो संबंधी नमूनों की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई थी, लेकिन इनके आरटीपीसीआर परीक्षण निगेटिव पाए गए थे. साढ़े ग्यारह हजार फुट से ज्यादा की उंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम पहुंचने के लिए करीब 16 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है. चढ़ाई वाले इस रास्ते को तय करने के लिए कुछ श्रद्धालुओं को पिट्ठू, पालकी या घोड़े-खच्चरों का सहारा लेना पड़ता है.
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