7 मई 2025 को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुए पाकिस्तान और पीओके में मौजूद नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया. इस ऑपरेशन के बाद दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है. ऐसे माहौल में एक बड़ा सवाल फिर से सामने आया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही ‘ड्रोन तकनीक की दौड़’ में आखिर किसका पलड़ा भारी है?
दरअसल दोनों देशों के बीच पारंपरिक दुश्मनी अब नई तकनीकी जंग में बदल चुकी है और इस बार मैदान है ‘ड्रोन तकनीक’. भारत पाकिस्तान ने अपनी सेनाओं को और ज्यादा सक्षम बनाने के लिए बिना पायलट वाले एयरक्राफ्ट यानी ड्रोन की तैनाती तेज कर दी है. इनसे न केवल जासूसी की जा सकती है, बल्कि दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले भी किए जा सकते हैं.
आज की लड़ाइयां मैदान से ज़्यादा आकाश में लड़ी जा रही हैं और इसमें ड्रोन बेहद अहम हथियार बन चुके हैं. भारत और पाकिस्तान, दोनों इस टेक्नोलॉजी पर तेजी से काम कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि किसका पलड़ा भारी है?
भारत: बड़ी खरीदारी और घरेलू निर्माण पर फोकस
भारत ने हाल ही में अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन की डील की है, जो दुनिया के सबसे एडवांस्ड और मारक ड्रोन माने जाते हैं. इनकी कीमत भले ही भारी हो (करीब 950 करोड़ रुपये प्रति ड्रोन), लेकिन इनकी क्षमता भी उतनी ही घातक है. इनमें से 15 ड्रोन नौसेना के पास होंगे, जबकि बाकी थल सेना और वायुसेना के बीच बांटे जाएंगे.
इसके अलावा भारत ने इजराइल से ‘हीरोन’ जैसे ड्रोन पहले ही हासिल किए हैं और अब उन्हीं तकनीकों को अपनाकर देश में खुद भी ड्रोन तैयार कर रहा है. 2020 में चीन के साथ सीमा तनाव के बाद भारत ने ड्रोन तकनीक को तेजी से बढ़ाना शुरू किया है.
भारत का मकसद है निगरानी, हमला और सुरक्षा तीनों क्षेत्रों में ड्रोन के माध्यम से ताकत हासिल करना है. इसके लिए घरेलू कंपनियां भी DRDO और HAL के साथ मिलकर नए ड्रोन सिस्टम पर काम कर रही हैं.
पाकिस्तान: तेज़ी से बढ़ती ‘ड्रोन पावर’
इस रेस में पाकिस्तान भी पीछे नहीं है. उसने तुर्की और चीन से आधुनिक ड्रोन जैसे ‘बैराक्तर TB2’, ‘एकेंजी’, ‘वैंग लोंग 2’ और ‘CH-4’ हासिल किए हैं. इसके साथ ही पाकिस्तान खुद भी अपने ड्रोन बना रहा है, जैसे ‘शहपर II’ और ‘बर्राक’.
शहपर II को पाकिस्तान की घरेलू कामयाबी माना जा रहा है, जो लगभग 1000 किमी तक उड़ सकता है. यह ड्रोन निगरानी के साथ सीथ मिसाइल से हमला करने की भी ताकत रखता है. पाकिस्तान ऑर्डनेंस फैक्ट्री और अन्य एजेंसियां अब लगातार ऐसे हथियारबंद ड्रोन बना रही हैं, जो युद्ध के मैदान में बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं.
रक्षा विशेषज्ञों के की मानें तो भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की ड्रोन रणनीति साफ है, भारत की एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा देना और समय रहते सटीक जवाब देना.
दोनों देशों में कौन है आगे?
तकनीकी रूप से देखें तो भारत के पास ज्यादा संसाधन, बड़ी आर्थिक ताकत और वैश्विक स्तर की साझेदारियां हैं. अमेरिका, इजराइल जैसे देशों से मिले अत्याधुनिक ड्रोन उसे बढ़त देते हैं. साथ ही भारत में तेजी से घरेलू निर्माण पर ज़ोर भी बढ़ रहा है.
वहीं पाकिस्तान की रणनीति स्मार्ट और लागत-प्रभावी है. उसने चीन और तुर्की जैसे सहयोगियों से न केवल ड्रोन्स हासिल किए हैं, बल्कि अपनी सेना में उनका बेहतर इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया है. उसके ड्रोन्स की उड़ान क्षमता लंबी है और वो ऊंचाई पर उड़कर भारतीय रडार और एयर डिफेंस सिस्टम को चुनौती देने में सक्षम हैं.
तनाव के समय ड्रोन की भूमिका और भविष्य की दिशा
चाहे LOC पर घुसपैठ रोकनी हो या समुद्र में निगरानी करनी हो, ड्रोन अब हर जगह मौजूद हैं. आने वाले कुछ सालों में यह टेकनोलॉजी और भी एडवांस होगी, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोनॉमस ऑपरेशन शामिल होंगे.
भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी झड़प या टकराव की स्थिति में ड्रोन सबसे पहले एक्टिव किए जाएंगे, क्योंकि ये कम जोखिम में बड़ी रणनीतिक जानकारी और हमला दोनों कर सकते हैं.
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