क्यों अक्सर खाली मिलता है बगल वाला ATM? नोटबंदी के बाद हालात सुधरे नहीं, उल्टा बिगड़ गए

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Last Updated:May 06, 2025, 15:52 ISTउत्तर भारत में एक-एक एटीएम से औसतन सालाना 1.30 करोड़ रुपये निकाले जा रहे हैं, जो नोटबंदी से पहले 1.02 करोड़ रुपये था. यूपीआई के बावजूद कैश का उपयोग बढ़ा है, खासकर बिहार, दिल्ली और यूपी में.हाइलाइट्सउत्तर भारत में एटीएम से सालाना 1.30 करोड़ रुपये निकाले जा रहे हैं.बिहार, दिल्ली और यूपी में कैश का उपयोग बढ़ा है.छोटे और सीमांत राज्य भी कैश बेस्ड इकॉनमी की दिशा में बढ़ रहे हैं.क्या आपके बाजू वाला एटीएम भी ज्यादातर खाली ही मिलता है? बहुत सारे लोगों को इस स्थिति का सामना करना पड़ता है. पर यकीन कीजिए, बैंक वाले तो खूब पैसा डालते हैं, लेकिन लोग इतना ज्यादा पैसा निकालते हैं कि आपके पहुंचने से पहले ही मशीन खाली हो जाती है. आपको याद होगा, नोटबंदी से पहले कैश का काफी प्रचलन था. नोटबैन के बाद यूपीआई ने पूरे बाजार पर कब्जा कर लिया. आज जिसे भी देखो, वह यूपीआई पेमेंट कर रहा है. फिर भी एटीएम मशीनें अक्सर खाली मिलती हैं. आपको यह आंकड़ा हैरान कर देगा कि अब हर एटीएम से सालाना 1.30 करोड़ रुपये निकाले जा रहे हैं. इसके बाद यह जानकर तो और भी हैरानी होगी कि नोटबंदी से पहले 2016-17 में एक एटीएम से औसतन सालाना 1.02 करोड़ रुपये निकाले जाते थे.

यह स्थिति खासकर उत्तर भारत की है. आंकड़े तो बताते हैं कि लोग आज भी कैश में पैसा खर्च करना ज्यादा पसंद करते हैं. चाहे वह बूढ़ी दादी का इलाज हो या गांव के हाट-बाज़ार की खरीदारी. कुल मिलाकर कैश आज भी मार्केट का किंग बना हुआ है.

वित्त वर्ष 2024-25 में उत्तर भारत कैश ट्रांजेक्शन के मामले में पूरे देश में सबसे आगे निकल गया है. CMS इंफो सिस्टम्स की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर की एटीएम मशीनों से औसतन 1.3 करोड़ रुपये की नकद निकासी हुई है. इसमें बिहार, नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य सबसे ज्यादा कैश निकालने वाले राज्य बने. इसका सीधा अर्थ है कि इन राज्यों में कैश के जरिए खरीदारी और लेन-देन अब भी प्रमुख है.

छोटे और सीमांत राज्य भी लिस्ट में आएरिपोर्ट में बताया गया कि बिहार, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पहली बार इस सूची में शामिल हुए हैं. इससे एक बात और पता चलती है कि अब छोटे और सीमांत राज्य भी कैश बेस्ड इकॉनमी की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं. ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में तो खासतौर पर कैश का ही बोलबाला है, क्योंकि वहां इंटरनेट की पहुंच कम है और डिजिटल पेमेंट का भरोसा अभी उतना नहीं बना है.

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि वित्त वर्ष 2016-17 में एक एटीएम से औसतन 1.02 करोड़ रुपये निकाले जाते थे. बीते वित्त वर्ष में यह बढ़कर 1.30 करोड़ रुपये हो गया है. मतलब लोगों की कैश पर निर्भरता पहले से भी ज्यादा बढ़ी है. इस दौरान अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 के बीच कैश निकासी का औसत टिकट साइज भी 4 फीसदी से 6 फीसदी तक बढ़ गया है. दूसरी ओर, यूपीआई से भुगतान करने वालों का औसत टिकट साइज घटकर 1,478 रुपये रह गया है, जो एक साल पहले 1,603 रुपये था.

यह आंकड़े बताते हैं कि जैसे-जैसे देश में डिजिटल पेमेंट की चर्चा बढ़ी है, वैसे ही कैश का इस्तेमाल भी बढ़ा है. खासकर खुदरा व्यापारी, छोटी दुकानों और रोजमर्रा की खरीदारी में कैश ही सबसे भरोसेमंद माध्यम बना हुआ है. RBI की अक्टूबर 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, डिजिटल की तुलना में कैश का अनुपात अब भी ऊंचा बना हुआ है. मार्च 2024 तक भारत में कुल खर्च का 60 फीसदी हिस्सा नकद में ही किया जा रहा था.
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