भारतीय राजनीति, साहित्य और समाजसेवा की त्रिवेणी कही जाने वाली डॉ. गिरिजा व्यास अब हमारे बीच नहीं रहीं। एक दर्दनाक हादसे ने इस बहुआयामी व्यक्तित्व की जीवन यात्रा का अंत कर दिया। अहमदाबाद के ज़ायडस अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाली डॉ. व्यास 90 प्रतिशत झुलसने और ब्रेन हेमरेज के बाद कई दिनों तक ज़िंदगी से लड़ती रहीं, लेकिन आख़िरकार ये जंग वे हार गईं।
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गिरिजा व्यास
– फोटो : अमर उजाला
उनके निधन की खबर से मेवाड़ शोक में डूब गया। उदयपुर की सड़कों, राजनीतिक गलियारों और साहित्यिक मंचों पर केवल एक नेता के जाने का शोक नहीं, एक युग की विदाई का दर्द महसूस किया गया।
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डॉ. गिरिजा व्यास
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नाथद्वारा की बेटी डॉ. व्यास दर्शन शास्त्र में डॉक्टरेट करके अमेरिका तक पहुंचीं। मगर जड़ों से जुड़ी रहीं। उन्होंने न केवल विश्वविद्यालयों में पढ़ाया, बल्कि आठ किताबें भी लिखीं, जिनमें से ‘एहसास के पर’ और ‘सीप, समुद्र और मोती’ आज भी पाठकों को झकझोरते हैं।
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25 वर्ष की उम्र में जब वो पहली बार विधायक बनीं, तो किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन वही महिला संसद, मंत्रालय, महिला आयोग और प्रदेश कांग्रेस जैसे अहम मंचों की आवाज़ बनेंगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में उनके निर्णय, महिला सशक्तिकरण की दिशा में उनके कदम और स्ट्रीट वेंडर कानून जैसी पहल उन्हें दूरदर्शी नेता साबित करती हैं।
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गिरिजा व्यास
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चित्तौड़गढ़ और उदयपुर से उन्होंने चुनाव लड़े, जीते और भाजपा के दिग्गज गुलाबचंद कटारिया को भी हराया, पर राजनीति उनके लिए सिर्फ सत्ता का माध्यम नहीं, सेवा का मंच था। साल 2018 में अंतिम चुनाव हारने के बाद वे चुनावी राजनीति से दूर हो गईं, लेकिन समाज और साहित्य से नहीं। अंतिम दिनों तक वे मंचों पर नारी चेतना की कवयित्री बनी रहीं लिखती रहीं, बोलती रहीं और लोगों को सोचने पर मजबूर करती रहीं।
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डॉ. गिरिजा व्यास का जाना केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व की विदाई नहीं है, ये उस संवेदनशील सोच की चुप्पी है, जो राजनीति में भी इंसानियत तलाशती थी। उनके विचार, उनकी कविताएं और उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को न सिर्फ दिशा देगा, बल्कि जीने का एक मकसद भी सिखाएगा।
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