राजस्थान के हृदय में धड़कता बीकानेर शहर आज अपने 538वें स्थापना दिवस का जश्न मना रहा है। विक्रम संवत् 1545, बैशाख शुक्ल द्वितीया, दिन शनिवार को राव बीका द्वारा बसाया गया यह नगर समय के साथ न सिर्फ भौगोलिक रूप से फैला, बल्कि अपनी गंगा-जमुनी तहजीब और दिलों को छू लेने वाले अपनापन से भारत के सांस्कृतिक नक्शे पर चमकता रहा। ‘पन्द्रह सौ पैंतालवे सुद बैशाख सुमेर। थावर बीज थरपियो बीके बीकानेर॥’ ये दो पंक्तियां केवल एक तिथि का उल्लेख नहीं, एक सांस्कृतिक यात्रा की शुरुआत का दस्तावेज हैं।
राजस्थान की रेत में अगर किसी शहर ने अपनायत, रवायत और दिलदारी का रंग भरा है, तो वह है बीकानेर। गंगा-जमुनी तहजीब का वह खूबसूरत चिराग, जो न केवल इतिहास के पन्नों में चमकता है बल्कि आज भी हर दिल में धड़कता है। आज बीकानेर अपना 538वां स्थापना दिवस मना रहा है और पूरा शहर जैसे अपनी जड़ों से फिर एक बार प्रेम का इजहार कर रहा है।
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ऐतिहासिक धरोहरों से लेकर मानवीय रिश्तों तक
बीकानेर की नींव 1488 में राव बीका ने रखी थी। पर इस शहर की असल बुनियाद केवल किले, हवेलियां और स्थापत्य ही नहीं है, बल्कि वो रिश्ते हैं, जो यहां हर गली, हर चौक, हर आंगन में सांस लेते हैं। यही तो वो शहर है जहां मेहमाननवाजी सिर्फ रस्म नहीं, रूह है।
आयोजन और उत्सव: संस्कृति का रंगमंच
स्थापना दिवस पर पूरे शहर में पारंपरिक परिधान में लोग सजते हैं। पतंगबाजी से लेकर चंदा पूजन तक, खीचड़ा और इमलाणी से लेकर दही-लस्सी और बेल शरबत के चलते हर कोना खुशबू और स्वाद से सराबोर होता है। घर-घर मटकी स्थापना और महिलाओं की पारंपरिक पूजा नगर के समृद्ध भविष्य की प्रार्थना बन जाती है। शहर के लोग अगले दो दिन इस भीषण गर्मी में छतों पर रहकर पतंगबाजी का लुत्फ उठाएंगे
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चंदा: रचनात्मक चेतना की उड़ान
स्थापना दिवस का मुख्य आकर्षण बनता है चंदा- जिस पर लोक कलाएं, दोहे और सामाजिक संदेश उकेरे जाते हैं। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक संवाद है। पीढ़ियों से चलती आ रही सामाजिक जिम्मेदारी और सौहार्द्र का प्रतीक।
बीकानेर का स्थापना दिवस एक उत्सव भर नहीं, बल्कि अपनेपन की वह रूहानी दावत है जिसमें हर कोई शामिल है। चाहे वह शहर की गलियों में बसा कोई आम नागरिक हो या दूर से आया कोई मेहमान। यह शहर न सिर्फ आपको रेत पर चलना सिखाता है, बल्कि दिलों में उतरना भी सिखा देता है।
शायरी में उतरती मोहब्बत की जमीन
स्थापना दिवस के मौके पर बीकानेर को समझने के लिए शायर अजीज आज़ाद साहब के ये लफ्ज़ काफी हैं।
तुम हो खंजर भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें,
पर जरा प्यार से बाहों में भर कर तो देखो,
मेरा दावा है सब जहर उतर जाएगा,
तुम दो दिन मेरे शहर में ठहर कर तो देखो।
ये किसी शायर के शेर के केवल अल्फाज नहीं, बीकानेर शहर की वो तासीर है जो दिलों की नफरत को भी मोहब्बत में ढाल देती है।
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