Pahalgam Attack Chanakya Niti: चाणक्य ने बताया हमला या देश पर संकट आए तो नागरिक के तौर पर क्या

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Pahalgam Attack Chanakya Niti: आतंकवादी (Terrorist) निर्दय, हिंसक और दुष्ट होते हैं, जो जानबूझकर समाज में हिंसा फैलाने के लिए आमतौर पर आम नागरिकों को निशाना बनाते हैं. जम्मू कश्मीर के पहलगाम में भी यही हुआ.

जम्मू कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में दुख के साथ ही गुस्से का भी माहौल है. चारों ओर आतंकवादियों के खिलाफ कठोक कार्रवाई की मांग हो रही है. अनुमान तो यह लगाया जा रहा है, इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ सकता है. लेकिन बतौर नागरिक ऐसी स्थिति में आपको क्या करना चाहिए, इसके बारे में आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में विस्तारपूर्व बताया है.

हमले या देश पर संकट की स्थिति में क्या करें

जीवन के मोड़ में अच्छी-बुरी कई तरह की परिस्थितियां आती हैं. लेकिन अचानक आई कुछ स्थिति जीवन को झंझोर कर रख देती है. आचार्य चाणक्य ने श्लोक के माध्यम से अपनी नीतियों में जीवन जीने के कई तरीके बताएं हैं, जिसमें एक है देश में हिंसा, तनाव या हमले जैसे महौल में एक नागरिक के तौर पर आपके कर्तव्य क्या होने चाहिए. अगर हमले या देश पर संकट की स्थिति आ जाती है तो आपको क्या करना चाहिए. साथ ही चाणक्य यह भी बताते हैं आतंकवादी जैसे दुष्टों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए.

खलानां कण्टकानां द्विविधैव प्रतिक्रिया।
उपानामुखभंगो वा दूरतैव विसर्जनम।।

आचार्य चाणक्य ने श्लोक में दुष्टों और कांटो को एक समान बताया है. इनके खात्मे के लिए या तो उन्हें कुचल दें या फिर उनके सामने से हट जाएं. इनसे किसी तरह का मतलब या संबंध रखना आपके लिए अहितकारी हो सकता है. अगर हम चाणक्य के इस श्लोक को पहलगाम आतंकी हमले के संदर्भ में देखें तो, हमले के बाद की परिस्थिति के अनुसार, आतंकियों जैसे दुष्ट कांटों को भी कुचलकर रख देना चाहिए.

कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसेन प्रतिहिंसनम्।
तत्र दोषो पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत्।।

इस श्लोक के जरिए चाणक्य अपनी नीति में बताते हैं कि उपकार करने वालों के साथ उपकार, हिंसक के साथ प्रतिहिंसा और दुष्टों के साथ दुष्टता ही करनी चाहिए. इसमें कोई दोष नहीं है. अगर हम इस श्लोक को भी पहलगाम आतंकी हमले के संदर्भ में देखें तो, आंतकवादियों के हिंसा, कत्ल और क्रूरता का जवाब भी उन्हें उसी प्रकार से देना चाहिए.

 नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः।।

इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य बताते हैं कि, व्यक्ति को अधिक सीधा और सरल भी नहीं होना चाहिए. क्योंकि जंगल में सीधे खड़े वृक्ष काट दिए जाते हैं. वहीं टेढ़े-मेढ़ों को छोड़ दिया जाता है. इसका अर्थ यही है कि सीधे व्यक्ति का कोई भी आसानी से अनुचित फायदा उठा सकता है.  लेकिन जो व्यक्ति चतुर और शातिर होता है, वह आने वाले संकट को पहले ही भांप लेता है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

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