Pope Francis: पोप फ्रांसिस- एक सरल जीवन, एक महान संदेश

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पोप फ्रांसिस (Pope Francis) ने केवल एक धार्मिक नेता की भूमिका नहीं निभाई, बल्कि वे मानवता, सेवा, करुणा और समानता के प्रतीक बन गए. उनके जीवन, धार्मिक योगदान और भारतीय परिप्रेक्ष्य में उनके प्रभाव को आइए जानते हैं.

पोप फ्रांसिस कौन थे?
पोप फ्रांसिस का पूरा नाम होर्गे मारियो बर्गोलियो था. इनका जन्म 17 दिसंबर 1936, ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में हुआ था. इनका चयन 13 मार्च 2013 को पोप के लिए किया गया था. पोप की पहचान पहले लैटिन अमेरिकी पोप की थी, वे पहले जेसुइट (Jesuit) संप्रदाय के पोप थे. पोप फ्रांसिस को उनकी सादगी और विनम्रता के लिए जाना जाता है. वे सदैव गरीबों और हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज बनने में अहम भूमिका निभाई.

पोप फ्रांसिस का धार्मिक दृष्टिकोण
पोप फ्रांसिस के नेतृत्व में चर्च का चेहरा बदला. उन्होंने चर्च को ‘नियमों की दीवार’ से बाहर निकालकर ‘करुणा का द्वार’ बनाया. उनके किए कार्यों में-

1. गरीबों के प्रति समर्पण- ‘चर्च को गरीबों के बीच जाना चाहिए, न कि सिर्फ सत्ता के गलियारों में.’ पोप फ्रांसिस ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि चर्च की प्राथमिकता गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा होनी चाहिए.

2. पर्यावरण के रक्षक- उन्होंने Laudato Si नामक एक दस्तावेज़ जारी किया, जिसमें पर्यावरण की रक्षा को धार्मिक कर्तव्य बताया. ‘पृथ्वी हमारी साझी माँ है, और उसकी रक्षा हम सबका धर्म है.’

3. धर्म के नाम पर बैर नहीं- पोप फ्रांसिस ने मुस्लिम, यहूदी, बौद्ध, और हिंदू समुदायों के साथ संवाद को बढ़ावा दिया. ‘सच्चा धर्म एकता सिखाता है, नफ़रत नहीं.’

4. पारंपरिक रुख में संतुलन- उन्होंने कैथोलिक चर्च की परंपराओं को पूरी तरह नकारा नहीं, लेकिन उनमें समय के अनुसार करुणा और व्यवहारिकता जोड़ी.

भारतीय के लिए पोप फ्रांसिस का नजरिया
भले ही पोप फ्रांसिस कभी भारत नहीं आए, लेकिन भारत के प्रति उनका स्नेह और चिंता हमेशा झलकती रही. भारतीय कैथोलिक चर्च के कई प्रतिनिधियों से उन्होंने नज़दीकी संवाद बनाए रखा. उन्होंने भारत में सामाजिक समरसता, धार्मिक सहिष्णुता, और मानवाधिकारों की वकालत की.

उनका निधन केवल एक धर्मगुरु की मृत्यु नहीं है, बल्कि एक युग का अंत है. लेकिन उनकी विचारधारा, प्रेम, सेवा, करुणा और समानता, एक ऐसी विरासत है, जो आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेगी.

पोप फ्रांसिस ने यह साबित किया कि धार्मिक नेतृत्व केवल उपदेश नहीं, आचरण और सेवा से होता है. उन्होंने चर्च को जनता के करीब लाया, और दुनिया को यह संदेश दिया कि ‘धर्म अगर इंसान से नहीं जुड़ता, तो वह केवल रस्म बनकर रह जाता है.’ उनके विचारजीवन में सेवा, सादगी और सत्य का रास्ता अपनाने पर बल देते हैं.

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