आखिर भगवान परशुराम ने क्यों और किसके कहने पर की थी अपनी मां की हत्या?

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Parshuram Jayanti 2025: अक्षय तृतीया के दिन ही परशुराम जयंती मनाई जाती है. परशुराम को हिंदू धर्म के सात अमर लोगों में से एक माना जाता है. महाभारत और रामायण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो भीष्म, कर्ण और द्रोण के गुरु बने. भगवान परशुराम ने भीष्‍म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे कई सूर वीरों करे शिक्षा दी.

परशुराम जी को क्रोध बहुत आता था. भगवान परशुराम के क्रोध से देवी-देवता थर-थर कांपते थे. परशुराम जी अपने माता पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने अपनी माता की गर्दन धड़ से अलग कर दी थी. आइए जानते हैं इसके पीछे क्या वजह थी.

किसके कहने पर परशुराम जी ने मां का वध किया ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. परशुराम के चार बड़े भाई थे. वे आज्ञाकारी होने के साथ-साथ उग्र स्वभाव के भी थे.  ॠषि जमदग्नि ने एक बार अपने सभी पुत्र को माता की हत्या करने की आज्ञा दी लेकिन तीनों बेटों ने ऐसा करने से मना कर दिया लेकिन भगवान परशुराम ने पिता के आदेशानुसार माता का सिर धड़ से अलग कर दिया. पिता ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बेहद प्रसन्न हुए और भगवान परशुराम को तीन वरदान दिए क्या थे वो वरदान और आखिर क्यों परशुराम जी ने माता का वध किया जानें.

क्यों परशुराम जी ने की मां की हत्या ?

एक दिन जब सब पुत्र काम से जंगल चले गए तब माता रेणुका स्नान करने सरोवर गईं थी. वहां राजा चित्ररथ भी नौकाविहार कर रहे थे. उन्हें देख ऋषि की पत्नी रेणुका का मन विचलित हो गया और वह उसी मनोदशा में आश्रम लौट आईं. आश्रम में ऋषि जमदग्नि ने जब पत्नी की ये दशा देखी तो उन्हें अपनी दिव्य दृष्टि से सब ज्ञात हो गया.

इससे वह बेहद क्रोधित हुए और अपने पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दिया लेकिन सभी ने इनकार कर दिया. महर्षि जमदग्नि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति को खत्म कर दिया. तभी वहां परशुराम आ गए और उन्होंने माता का सिर काट दिया.

परशुराम जी ने मांगे 3 वरदान

महर्षि जमदग्नि परशुराम जी से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा तब परशुराम ने 3 वरदान मांगे और पिता ने उनकी सारी इच्छाएं पूरी की.

  1. पहला माता रेणुका को पुनर्जीवित करना
  2. दूसरा चारों भाइयों को ठीक करना
  3. तीसरा कि उन्हें कभी पराजय का सामना न करना पड़े, वह दीर्धायु हों.

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