जब जर्मन सबमरीन के टॉरपीडो ने समंदर में डुबो दिया अंबेडकर का ‘खजाना’, जानें क्या है किस्सा

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Ambedkar Jayanti 2025: डॉ. बीआर अंबेडकर को शिक्षा के क्षेत्र में अपने करियर के रास्ते में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, उनमें से एक जर्मन पनडुब्बी भी थी. वर्ष 1917 में जब प्रथम विश्वयुद्ध अपने चरम पर था, अंबेडकर ने अपने पीएचडी थीसिस का एक मसौदा और पुस्तकों का एक विशाल संग्रह एसएस साल्सेट नामक जहाज के जरिये लंदन से तत्कालीन बॉम्बे भेजा था. 
जर्मन पनडुब्बी से दागे गए टारपीडो ने जहाज के साथ ही अंबेडकर की पुस्तकों और उनके पीएचडी थीसिस के मसौदे को इंग्लिश चैनल की गहराई में डुबो दिया था. प्रॉब्लम ऑफ रुपी किताब अब अंबेडकर की जिंदगी का एक हिस्सा बन गई है. इस घटना के बावजूद अंबेडकर ने आगे बढ़ने का अपना हौसला नहीं छोड़ा और उन्होंने अपना प्रयास दोगुना कर दिया. उन्हें कम से कम दो डॉक्टरेट और कई अन्य मानद उपाधियां मिलीं.
इस घटना के साथ ही अंबेडकर के अथक शैक्षणिक प्रयासों को आकाश सिंह राठौर की पुस्तक ‘बीकमिंग बाबासाहेब: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ भीमराव रामजी अंबेडकर (खंड 1) में शामिल किया गया है. इस पुस्तक को हार्परकॉलिन्स इंडिया की ओर से प्रकाशित किया गया है.
‘अंबेडकर को 1917 में भारत लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा’बड़ौदा छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त होने और रियासत की ओर से वित्तीय सहायता बढ़ाने से इनकार किए जाने के बाद अंबेडकर को साल 1917 की गर्मियों में भारत लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा. वे लंदन से रवाना हुए, वह शहर जहां उन्होंने एक साल से अधिक समय तक अथक परिश्रम किया था. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एमएससी का कोर्स वर्क पूरा कर लिया था और कोलंबिया विश्वविद्यालय में पीएचडी की तैयारी में थे. हालांकि, उन्हें अभी भी अपनी ‘मास्टर्स थीसिस’ जमा करनी थी और उनकी डॉक्टरेट थीसिस भी पूरा नहीं हुई थी. इसके अलावा, उन्होंने ‘ग्रेज इन’ में अपना विधिक प्रशिक्षण शुरू ही किया था.
‘जर्मन पनडुब्बी ने डुबो दी अंबेडकर की थीसिस’इस प्रकार विवश होकर उन्होंने अपनी किताबें और कागजात ब्रिटिश स्टीमर एसएस साल्सेट के कार्गो में अलग-अलग भेजे और स्वयं एसएस कैसर-ए-हिंद पर सवार होकर भारत पहुंचे. 20 जुलाई को जर्मन पनडुब्बी यूबी-40 ने एसएस साल्सेट पर एक टारपीडो दागा. इस हमले में चालक दल के 15 सदस्य मारे गए और आंबेडकर की थीसिस के साथ-साथ उनकी पुस्तकों का विशाल संग्रह भी पानी में डूब गया.
राठौर ने अपनी किताब में लिखा, ‘टारपीडो के हमले के 45 मिनट बाद एसएस साल्सेट डूब गया, जिससे बड़ी संख्या में आंबेडकर की किताबें और उनके महत्वपूर्ण कागजात समुद्र की तलहटी में समा गए. इसमें कोलंबिया विश्वविद्यालय में उनकी डॉक्टरेट थीसिस (‘द नेशनल डिविडेंड’) का पहला मसौदा भी शामिल था. अंबेडकर 21 अगस्त 1917 को बॉम्बे पहुंचे और महार समुदाय के सदस्यों ने उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए उनका भव्य स्वागत किया.
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