Sirohi: ब्रह्माकुमारीज संस्थान की मुख्य प्रशासिका का निधन, राज्यपाल व सीएम भजनलाल समेत कई नेताओं ने जताया दुख

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ब्रह्माकुमारीज संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का सोमवार देर रात 1:20 बजे अहमदाबाद के जाइडस अस्पताल में निधन हो गया। वे 101 वर्ष की थीं। उनका पार्थिव शरीर माउंट आबू स्थित शांतिवन मुख्यालय के कॉन्फ्रेंस हॉल में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है, जहां श्रद्धांजलि देने वालों की भीड़ उमड़ रही है। उनका अंतिम संस्कार 10 अप्रैल को सुबह 10 बजे किया जाएगा।

राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमन डेका और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सहित अनेक प्रमुख हस्तियों ने उनके निधन पर शोक जताते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है। दादी के निधन से ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के देश-विदेश में फैले सेवाकेंद्रों और अनुयायियों में शोक की लहर है। मुख्यालय में अखंड योग-साधना का क्रम जारी है।

संस्थान को दी चिरस्मरणीय सेवाएं

चार वर्ष पूर्व दादी हृदयमोहिनी के निधन के बाद राजयोगिनी रतनमोहिनी संस्थान की मुख्य प्रशासिका बनी थीं। वे पिछले चार दशक से ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग की अध्यक्षा थीं। उनके नेतृत्व में 2006 में निकाली गई स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुई थी। वर्ष 2014 में गुलबर्गा विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। दादी रतनमोहिनी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारीज से जुड़कर अपना पूरा जीवन समाजसेवा और अध्यात्म को समर्पित कर दिया। उनकी दिनचर्या 101 वर्ष की उम्र में भी ब्रह्ममुहूर्त में सुबह 3:30 बजे शुरू होती थी। राजयोग ध्यान उनका अभिन्न हिस्सा था।

आध्यात्मिक जीवन का प्रेरणास्त्रोत

25 मार्च 1925 को सिंध (अब पाकिस्तान) के हैदराबाद शहर में जन्मीं दादी का मूल नाम लक्ष्मी था। वे बचपन से ही भक्तिभाव से ओतप्रोत थीं और ईश्वर साधना में रुचि रखती थीं। वर्ष 1937 में ब्रह्माकुमारी संस्थान की स्थापना के समय से वे इससे जुड़ी रहीं। 1969 में ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने तक वे उनके साथ साए की तरह रहीं।

प्रशिक्षण प्रोग्राम की प्रमुख

वर्ष 1996 में संस्थान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बेटियों को विधिवत ब्रह्माकुमारी बनाने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई, जिसकी जिम्मेदारी तत्कालीन मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि ने दादी रतनमोहिनी को सौंपी। तब से बहनों की नियुक्ति और प्रशिक्षण का कार्य उन्हीं के निर्देशन में होता रहा। उनके नेतृत्व में 6000 से अधिक सेवाकेंद्रों की स्थापना हुई और स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा के माध्यम से 30,000 किमी की यात्रा कर 1.25 करोड़ से अधिक लोगों तक शांति, प्रेम, एकता, अध्यात्म और व्यसनमुक्ति का संदेश पहुंचाया गया।

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ऐतिहासिक यात्राओं की सूत्रधार

1985 में उनके नेतृत्व में भारत एकता युवा पदयात्रा निकाली गई थी, जिसमें 12,550 किमी की दूरी तय की गई। इसकी शुरुआत तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने की थी। कन्याकुमारी से दिल्ली तक की 3,300 किमी की यह यात्रा सबसे लंबी थी। उन्होंने कुल 70,000 किमी से अधिक की 13 मेगा पैदल यात्राओं का नेतृत्व किया। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उन्हें सम्मानित किया गया।

संस्थान की वरिष्ठ बहनों ने अर्पित की श्रद्धांजलि

दादी को श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में संस्थान की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका बीके मोहिनी दीदी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके मुन्नी दीदी, बीके संतोष दीदी, अतिरिक्त महासचिव बीके डॉ. मृत्युंजय भाई, बीके करुणा भाई, जयपुर सबजोन की निदेशिका बीके सुषमा दीदी, बीके शारदा दीदी और बीके मनोरमा दीदी प्रमुख रूप से शामिल रहीं। सभी ने पुष्पांजलि अर्पित कर योग और ध्यान के माध्यम से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

 

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