Trump tariffs 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल 2025 को ‘लिबरेशन डे’ पर वैश्विक आयातों पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ की घोषणा की. इसके तहत चीन पर 34%, यूरोपीय संघ पर 20%, दक्षिण कोरिया पर 25%, भारत पर 26%, जापान पर 24%, और ताइवान पर 32% टैरिफ लगाया गया. उन्होंने कहा कि अन्य देश अमेरिका से अधिक शुल्क लेते हैं, जिससे अमेरिकी इंडस्ट्री को नुकसान हुआ है. इसके अलावा, सभी विदेशी निर्मित ऑटोमोबाइल्स पर 25% टैरिफ आधी रात से लागू किया गया.
2 अप्रैल 2025 को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक कार्यक्रम में घोषणा की कि अमेरिका अब विभिन्न देशों से आने वाले सामानों पर नए टैक्स लगाएगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने विशेष रूप से भारत का जिक्र करते हुए कहा कि भारत अमेरिकी मोटरसाइकिलों पर 70% टैक्स लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय मोटरसाइकिलों पर केवल 2.4% टैक्स लेता है. उन्होंने कहा कि यह उचित नहीं है और अब अमेरिका भी समान टैक्स लगाएगा. भारतीय वाणिज्य मंत्रालय लगातार अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहा था और खबरें थीं कि शायद भारत पर नरमी बरती जाए. मगर ट्रंप के ऐलान के बाद साफ हो गया कि उन्होंने भारत को ज्यादा रियायत नहीं दी है. हालांकि ट्रंप के मुताबिक भारत पर ‘डिस्काउंट के साथ टैक्स’ लगाया गया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “भारत बहुत, बहुत टफ है. प्रधानमंत्री (नरेंद्र) अभी-अभी यहां से गए हैं, वे मेरे अच्छे मित्र हैं, लेकिन भारत हमारे साथ सही व्यवहार नहीं कर रहा. वे हम पर 52% टैक्स लगाते हैं, जबकि हम उन पर लगभग कुछ भी नहीं लगाते.”
ट्रंप ने कहा कि कई देश अमेरिकी सामानों पर बहुत अधिक टैक्स लगाते हैं, जबकि अमेरिका उनसे बहुत कम टैक्स लेता है. उदाहरण के लिए, चीन से आने वाले सामानों पर 34%, यूरोपीय संघ पर 20%, दक्षिण कोरिया पर 25%, भारत पर 26%, जापान पर 24%, और ताइवान पर 32% टैक्स लगाया जाएगा.
कारों पर 25 फीसदी टैरिफइसके अलावा, राष्ट्रपति ट्रंप ने घोषणा की कि सभी विदेशी निर्मित कारों पर 25% टैक्स आधी रात से लागू होगा. उन्होंने कहा कि पिछले कई दशकों से अन्य देश अमेरिका का आर्थिक शोषण कर रहे हैं, जिससे अमेरिकी उद्योगों को नुकसान हुआ है. अब यह बंद होगा और अमेरिकी उद्योगों की रक्षा की जाएगी.
इन नए टैक्सों के कारण कई देशों ने चिंता जताई है और कुछ ने जवाबी कदम उठाने की बात कही है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ सकता है और अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी सामानों की कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है.
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