महाराणा सांगा पर की गई विवादित टिप्पणी के बाद इतिहासकारों और विशेषज्ञों के बीच एक नई बहस छिड़ गई है। इतिहासकारों का कहना है कि यह सत्य नहीं है कि महाराणा सांगा ने बाबर को भारत आने का न्योता भेजा था। बल्कि बाबर ने स्वयं संधि दूत के माध्यम से महाराणा सांगा के पास संदेश भेजा था। इसी को लेकर इतिहासकारों और विशेषज्ञों द्वारा तमाम तथ्यों को खंगालकर सत्य सामने लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
बाबरनामा बनाम भारतीय ऐतिहासिक स्रोत
कानोड़िया पी.जी. महिला महाविद्यालय जयपुर की इतिहास विभाग अध्यक्ष डॉ. सुमन धनाका ने इस विषय पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि बाबरनामा में लिखा गया है कि महाराणा सांगा ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण भेजा था, लेकिन हमें यह समझना होगा कि बाबरनामा स्वयं बाबर द्वारा लिखा गया ग्रंथ है, जिसमें उसने अपनी विजय को महिमामंडित किया है। इतिहास को केवल एक स्रोत से देखना सही नहीं होगा।
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उन्होंने आगे बताया कि राजस्थान के प्राच्य विद्या संस्थान, उदयपुर में संरक्षित ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार बाबर ने स्वयं अपना दूत भेजकर महाराणा सांगा से संपर्क किया था।
बागेश्वर पुरोहित की डायरी में दर्ज ऐतिहासिक तथ्य
इतिहासकारों ने बताया कि महाराणा सांगा के दरबारी पुरोहित बागेश्वर पुरोहित ने अपनी डायरी में इसका स्पष्ट विवरण दिया है। उनके वंशज अक्षय नाथ पुरोहित को यह डायरी प्राप्त हुई थी, जिसमें लिखा है कि बाबर ने महाराणा सांगा के पास संधि दूत भेजकर उनका सहयोग मांगा था, लेकिन महाराणा सांगा ने इसे अस्वीकार कर दिया था।
हालांकि सलहदी के राजा ने महाराणा सांगा को इस प्रस्ताव को रणनीतिक रूप से स्वीकार करने की सलाह दी। सांगा ने इसे सीधे समर्थन के बजाय संधि के रूप में स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने पानीपत के प्रथम युद्ध (1526) में कोई भाग नहीं लिया।
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खानवा के युद्ध की सच्चाई
डॉ. सुमन धनाका ने बताया कि महाराणा सांगा ने न तो बाबर को न्योता भेजा और न ही उसे सीधे समर्थन दिया लेकिन जब बाबर ने इब्राहीम लोदी को हराने के बाद भारत में अपनी स्थिति मजबूत करनी चाही, तो उसने महाराणा सांगा पर ही हमला कर दिया। 16 मार्च 1527 को खानवा के युद्ध में बाबर ने तोपखाने और धोखाधड़ी की रणनीति का इस्तेमाल किया, जिससे महाराणा सांगा पराजित हुए।
राजस्थान की युद्ध नीति: आक्रामक नहीं, रक्षात्मक रही
कानोड़िया पी.जी. महिला महाविद्यालय, जयपुर की भूगोल विभाग अध्यक्ष डॉ. नीलम बागेश्वरी ने कहा कि राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियां सदैव रक्षात्मक युद्ध नीति की ओर प्रेरित करती रही हैं। हमलावरों ने हमेशा साम्राज्य विस्तार के लिए आक्रमण किए, जबकि राजपूत शासकों ने आत्मरक्षा और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध किए।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजस्थान के युद्धों का उद्देश्य कभी भी आक्रामक नहीं रहा, बल्कि बाहरी आक्रमणकारियों को रोकना और अपने राज्य की रक्षा करना ही उनकी प्राथमिकता रही।
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